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________________ २३४ भगवती भवति ४, 'अहवा दो पओगपरिणया एगे वीससापरिणए ५' अथवा द्वे द्रव्ये प्रयोगपरिणते भवतः, एकं विस्त्रसापरिणत भवति', 'अहवा एगे मीसापरिणंए, दो areerपरिणया ६' अथवा एक द्रव्यं मिश्रपरिणतं भवति, द्वे द्रव्ये विसापरिणते भवतः ६, 'अहवा दो मीसापरिणया, एगे वीससापरिणए७' अथवा द्वे द्रव्ये मिश्रपरिणते भवतः, एकं द्रव्यं विस्रसापरिणतं भवति, 'अहत्रा एगे पओगपरिणए, एगे मीसापरिणए, एगे बीससापरिणए ७' अथवा एक द्रव्यं प्रयोगपरिणतम्, एक मिश्रपरिणतम्, एक त्रिस्रसापरिणतं भवति । गौतमः पृच्छति - 'जइ पओग परिगया कि मणप्पओगपरिणया, बड़प्पओगपरिगया, कायप्पओगपरिणया, यानि द्रव्याणि प्रयोगपरिणतानि तानि किं मनःप्रयोगपरिणतानि वचःप्रयोगपरिणतानि, हैं और एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है ३, 'अहवा दो पओगपरिणया, एगे वीससा परिणए' अथवा कोई दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसापरिणत होता है ४, 'अहवा एगे मीसापरिणए, दो वीससापरिणया' अथवा एकद्रव्य मिश्रपरिणत होता है और दो द्रव्य विस्रसापरिणत होते हैं ५, ' अहवा दो मीसापरिणया एगे वीससा परिणए' अथवा कोई दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसा परिणत होता है ६ ' अहवा एगे पओगपरिणए, एगे मीसापरिणए' कोई एक द्रव्य प्रयोग परिणत होता है, कोई एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है ( एगे वीसमा परिणए ) कोई एक द्रव्य विस्रसा परिणत होता है ७ । अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जइ पओगपरिणया किं मणप्पओगपरिणया, वइप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया' हे भदन्त ! जो तीनों द्रव्यप्रयोगपरिणत पारणए' अथवा मे द्रव्यो प्रयोगपति होय छे भने द्रव्य मिश्रपरित होय छे. 'हवा दो पओगपरिणया एगे वीससापरिणए' अथवा मे द्रव्य प्रयोगपरिगुत होय छे याने थोड द्रव्य विस्वसा परिचित होय छे, ४ ' अहवा एगे मीसापरिणए दो वीससा परिणया' अथवा मे द्रव्य मिश्र परिष्कृत होय छे मने में द्रव्य विस्वसा પરિષ્કૃત હૈાય છે. પ अहवा दो मीसा परिणया एगे वीससा परिणए અથવા એ દ્રવ્ય મિશ્ર પતિ હોય છે અને એક દ્રવ્ય વિસસા પરિણત હાય છે. ૬ ' rear एगे ओगपरिणए, एगे मीसा परिणए' अर्थ मेड द्रव्य प्रयोगयशिशुत ! . ४ ४ द्रव्य मिश्र परिणत होय छे. 'एगे बीससा परिणए' अष्ठ भे દ્રવ્ય વિસ્રસા પરિણત હાય છે. છ 6 " प्रश्न- 'जड़ पओगपरिणया, किं मणप्पओगपरिणया, वप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया ' हे भगवन् द्रव्य प्रयोगपरियत होय हे तो शुद्धते શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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