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भगवतीसूत्रे टीका-गौतमः पृच्छति-'जइ बीससापरिणए कि वण्णपरिणए गंधपरिणए, रसपरिणए, फासपरिणए, संठाणपरिणए ? ' हे भदन्त । यद् द्रव्यं विसरा. परिणत विस्रसया स्वभावेन परिणामप्राप्त तत् किम् वर्णपरिणतम्, गन्धपरिणतम्, रसपरिणतम्, स्पर्शपरिणतम्, संस्थानपरिणतम् भवति ? भगवानाह-'गोयमा ! वनपरिणए वा, गंधपरिणए वा, रसपरिणए वा, फासपरिणए वा, संठाणपरि. पुच्छा) हे भदन्त ! यदि वह द्रव्य संस्थानरूपमें परिणत होता है तो क्या वह परिमंडल संस्थानरूपमें परिणत होता है या यावत् आयत संस्थानरूपमें परिणत होता है ? ( गोयमा) हे गौतम ! (परिमंडल संठाणपरिणए वा जाव आययसंठाणपरिणए वा) संस्थानरूपमें परिणत हुआ वह द्रव्यपरिमंडलसंस्थानरूपमें भी परिणत होता है यावत्
आयतसंस्थानरूपमें भी परिणत होता है ।। ___टीकार्थ-इस सूत्रद्वारा गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि जइ वीसमा परिणए किं वण्णपरिणए, गंधपरिणए, रसपरिणए, फासपरिणए, संठाणपरिणए) हे भदन्त ! यदि वह द्रव्यविस्त्रसापरिणत होता है तो क्या वह वर्णरूपसे परिणत होता है ? या गंधरूपसे परिणत होता है क्या ? या रसरूपसे परिणत होता है क्या ? या स्पर्शरूप से परिणत होता है क्या ? या संस्थानरूपसे परिणत होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'वनपरिणए वा, गंधपरिणए वा, रसपरिणए वा फासपरिणए वा, संठाणपरिणए वा, परिणए पुच्छा ) 3 महन्त ! न्ने द्र०५ संस्थान३ परिमन पामे थे, तो शुत પારમંડલ સંસ્થાનરૂપે પરિણમે છે? કે આયત સંસ્થાન પર્યન્તના સંસ્થાનરૂપે પરિણમે છે? (गोयमा ! ) गौतम ! (परिमंडलसंस्थानपरिणए चा, जाव आययसंठाणपरिणए वा) सयान३५ परिणत येत ०५ परिभ सस्थान३२ ५५ परिश्मे છે. અને આયત સંસ્થાન પર્યન્તના સંસ્થાનરૂપે પણ પરિણમે છે.
-- गौतम स्वामी महावीर प्रभुने प्रश्न पूछे छे डे- 'जइ वीससा परिणए, कि वण्ण परिणए, गंधपरिणए, रसपरिणए, फासपरिणए, संठाणपरिणए ?" महन्त ! लेते द्र०५ विसंसापरिणत - २१माथी परिणत-हाय छे,
તે શું? વર્ણરૂપથી પરિણત હોય છે? ગંધરૂપથી પરિણત હોય છે કે રસરૂપથી પરિણત હેય છે? અગર સ્પર્શરૂપથી પરિણત હોય છે? અથવા સંસ્થાનરૂપથી પરિણત હોય છે.
उत्तर- गोयमा !' गौतम ! 'चनपरिणए वा, गंधपरिणए वा,
श्री. भगवती सूत्र :