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________________ १९२ भगवती सूत्रे यावत् ऋद्धिप्राप्तप्रमत्त संयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकसंख्येय वर्षायुष्क - यावत् परिणतम्, नो अवृद्धिप्राप्तप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्क- यावत् प० यदि आहारकमिश्रशरीरकायप्रयेागप० किं मनुष्याहारकमिश्रशरीर० ? एवं यथा आहारकं तथैव मिश्रकमपि निरवशेषं भणितव्यम् ||१७|| मनुष्यके सिवाय अन्य जीवोंके आहारक शरीरकाय प्रयोगसे परिणत होता है ? ( एवं जहा ओगाहणसंठाणे जाव इड्ढिपत्तपमत्त संजय सम्मदिट्ठि पज्जत्तगसंखेज्जवासाज्य जाव परिणए, नो अणि ढिपत्तपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तसंखेज्जवासाज्य जाव प०) हे गौतम ! जिस प्रकार से प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहनो संस्थान पद में कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी जानना चाहिये यावत् आहारकशरीरकायप्रये - गसे परिणत द्रव्य ऋद्धिप्राप्त आहारक लब्धि संपन्न प्रमत्त साधु सम्यदृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य के आहारक शरीरकाय प्रयोग से परिणत होता है आहारकलब्धिको अप्राप्त प्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि संख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य के आहारक शरीरकायप्रयोगसे परिणत नहीं होता है। (जह आहारगमीसासरीर कायप्पआगपरिणए किं मणुस्साहारग मीसासरीर ०१ एवं जहा आहारगं तहेव मीसगं वि निरवसेसं भाणियव्व) हे भदन्त ! यदिवहद्रव्य आहारक मिश्रशरीरकाय प्रयोग परिणत होता है तो क्या वह मनुष्य आहारक 66 ( एवं जहा ओगाहणसंठाणे जाव इडिटपत्तपमत्त संजय सम्मद्दिट्ठि पज्जत्तगसंखेज्जवासाउय जाव परिणए, नो अणिडिपत्त पमत्त संजय सम्मद्दिहि पज्जत्त संखेज्जवासाउय जात्र परिणए) हे गौतम ? नेप्रमाणे प्रज्ञापना सूत्रना અવગાહના સંસ્થાન ” પદમાં કહેવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણે અહીં પણ સમજવું. તેમાં નીચે આપેલા કથન પર્યન્તનું સમસ્ત કથન ગ્રહણ કરવું – આહારક શરીરકાયપ્રયાગથી પરિણત દ્રવ્ય ઋદ્ધિપ્રાપ્ત આહારક લબ્ધિસ ંપન્ન પ્રમત્ત સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્ત સંખ્યાત્વના આયુવાળા મનુષ્યના આહારક શરીરકાયપ્રયાગથી પરિણત થાય છે, પશુ આહારક લબ્ધિ પ્રાપ્ત ન કરી હોય એવા પ્રમત્ત સયત સમ્યગ્દૃષ્ટિ સંખ્યાત वर्षाना वायुवाजा मनुष्यना आहार शरीरामप्रयोगथी परिष्कृत यतुं नथी. ( जइ आहारग ater सरीरको ओगपरिणए किं मणुस्साहारगमीसासरीर. ? एवं जहा आहारगं तत्र मीसगं वि निरवसेसं भाणियव्य ) डे लहन्त ! ने દ્રવ્ય ભાહારક મિશ્રકાયપ્રયાગ પરિણત હાય છે, તે શું મનુષ્યના આહારક મિશ્રશરીરકાય 66 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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