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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ म. १५ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् १८५ शरीरकायप्रयोगपरिणतं भवति ? भगवानाह- 'गोयमा ! वाउक्काइयएगिदिय जाव परिणए, नो अबाउक्काइय जाव परिणए' हे गौतम ! एकेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत द्रव्यं वायुकायिकै केन्द्रिय यावत्-वैक्रियशरीरकायपयोगपरिणत भवति, नो अवायुकायिक यावत्-एकेन्द्रियवैक्रियशरीरकायपयोगपरिणत भवति ‘एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउब्धियसरीरं भणियं तहा इहवि भाणियव्यं' एवं तथैव एतेन उपर्युक्तेन अभिलापेन आलापकक्रमेण यथा अवगाहनासंस्थाने प्रज्ञापनायाम् एकविंशतितमपदे वैक्रियशरीरं भणितं तथा इहापि वैक्रियशरोरं भणितव्यम्, तत्र चैवमुक्त प्रज्ञापनाया. 'जइ वाउक्काइयएगिदियवेउव्वियसरीरकायप्पओगजीवसे भिन्न है उन के वैक्रिय शरीरकाय प्रयोग होता है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'वाउकाइयएगिदिय जाव परिणए, नो अवाउ. काइय जाव परिणए' हे गौतम ! जो पुद्गल द्रव्य एकेन्द्रिय जीवके क्रियशरीरकाय प्रयोगसे परिणत हुआ कहा गया है, वह वायुकायिक एकेन्द्रिय जीवके शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता कहा गया है अवायुकायिक एकेन्द्रिय जीवसे भिन्न एकेन्द्रिय जीवके वैक्रिय शरीरकाय प्रयोगसे पारणत होता नहीं कहा गया है । 'एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउब्वियसरीरं भणिय तहा इह वि भाणियव्वं' इस उपर्युक्त अभिलापक्रमसे जैसा कथन अवगाहना संस्थानमें २१वें पदमें वैक्रियशरीरके विषयमें किया गया है, उसी तरहसे यहां पर भी कथन वैक्रियशरीरके विषयमें कर लेना चाहिये। वहां प्रज्ञापनामें ऐसा कहा है 'जइ वाउकाइय एगिदिय वेउन्विय सरीरकायप्पओग उत्तर- वाउक्काइय एगिदिय जाच परिणए, नो अबाउक्काइय एगिदिय जाव परिणए" गौतम ! २ पुस द्रव्य भेन्द्रिय 4 परी२४१यप्रयोगथी પરિણત થયેલું હોય છે, તે દ્રવ્ય વાયુકાયિક એકેન્દ્રય જીવન શૈક્રિયશરીરકાયપ્રયોગથી જ પરિણત થયેલું હોય છે. તે વાયુકાયિકે સિવાયના એકેન્દ્રિય જીવેના વૈશ્ચિશરીરકાયપ્રયોગથી परिक्षत यतु नथी. " एवं एए णं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउन्धियसरीरं भणियं तहा इह वि भाणियचं" मा ५२ ४ा प्रभारी ना अमिताभ દ્વારા જેવું કથન પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના અવગાહના સંસ્થાન નામના ૨૧ માં પદમાં વૈક્રિયશરીર વિષે કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે વૈક્રિયશરીર વિષે અહીં પણ કથન સમજી લેવું. त्यां प्रापनामा प्रमाणे युछे- जइ वाउकाइय एगिदिय वेउब्धिय सरीर श्री भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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