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________________ १४८ भगवतीसूत्रे बादरेsपि ! एवं यावत् वनस्पतिकायिकानां चतुष्को भेदः, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणां द्विको भेदः - पर्याप्तकथ अपर्याप्तकश्च । यदि पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं किं तिर्यग्योनिक पञ्चेन्द्रियौ दारिकशरीरका प्रयोगपरिणतं मनुष्यपञ्चेन्द्रिययावत् - परिणतम् ? गौतम ! तिर्यग्योनियावत्परिणत वा, मनुष्यपञ्चेन्द्रिययावत् परिणतं वा । " एकेन्द्रियके औदारिक शरीररूपकायप्रयोगसे भी परिणत होता है । ( एवं बादरे चि) इसी तरहसे वह एकद्रव्य पर्याप्त अपर्याप्त पृथिवीकायिक चादर एकेन्द्रियके औदारिक शरीररूपकायपयोग से भी परिणत होता है ऐसा जानना चाहिये । ( एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चउक्कओ भेदो) इसी तरह से वह एक द्रव्य यावत् सूक्ष्म पर्याप्त सूक्ष्मअपर्याप्त बादर पर्याप्तक बादर अपर्याप्त यावत् वनस्पतिकायिकके इन चारभेदोंके औदारिक शरीररूप कायप्रयोग से परिणत होता है यह कथन भी जानना चाहिये | ( बेइंदिय, तेइंदिय, चरिंदियाणं दुयओ भेदो पज्जन्तगाय अपज्जतगाय) इसी तरहसे वह एक द्रव्य बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और इन्द्रिय जीवोंके पर्याप्तक अपर्याप्तक के औदारिक शरीररूपकायप्रयोग से परिणत होता है ऐसा भी जानना चाहिये । (जइ पंचि - दिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए कि तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय ओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए कि मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए) हे भदन्त ! यदि वह एक द्रव्य पंचेन्द्रिय जीवके औदारिक शरीररूपकायके काय प्रयोगथी पण परिणत थाय छे. ( एवं बादरे त्रि) मे ४ प्रमाणे ते द्रव्य પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત ખાદર પૃથ્વીકાલિક એકન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયપ્રયોગથી परित थाय छे मे समवु. ( एवं जात्र वणस्सइकाइयाणं चक्कओ भेदो) એજ પ્રમાણે તે એક દ્રવ્ય સુક્ષ્મ પર્યાપ્ત, સૂક્ષ્મ અપર્યાપ્ત, બાદર પર્યાપ્ત, અને આદર્ અપર્યાપ્તરૂપ, ચાર ભેદવાળા અાયિક, વાયુકાચિક, તેજકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયપ્રયાગથી પણ પરિત થાય છે, એમ સમજવું. ( इंदिय, इंदिय, चउरिंदियाणं दुयओ भेदो पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य) એ જ પ્રમાણે તે એક દ્રવ્ય દીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય વેાના પર્યાપ્તક અને અપર્યાપકના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયપ્રયોગથી પણ પરિણત થાય છે એમ સમજવું. ( as पंचिदिय ओरालिय सरीरकायप्पओग परिणए, किं तिरिक्खजोणिय पंचिदियओरालिय सरीरकायप्पओगपरिणए, मणुस्तपंचिदिय जाव परिणए ?) હે ભદન્ત! જો તે એક દ્રવ્સ પચેન્દ્રિય જીવાના ઔદારિક શરીરરૂપ કાયના પ્રયોગથી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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