SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीमत्रे मिश्रपरिणताः। एकेन्द्रियमिश्रपरिणताः खलु भदन्त ! पुद्गलाः कतिविधाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! एवं यथा प्रयोगपरिणतः नव दण्डका भणिताः, एवं मिश्र परिणतैरपि नव दण्डका भणितव्याः, तथैव सर्व निरवशेषम्, नवरम् अभिलापः मिश्रपरिणताः इति भणितव्यम् शेषं तदेव, यावत् ये पर्याप्तकसर्वार्थसिद्धानुत्तरो० यावत् आयतसंस्थानपरिणता अपि ।मू० ११॥ परिणया) एकेन्द्रिय मिश्रपरिणत यावत् पंचेन्द्रियमिश्रपरिणत (एगिदिय मीसापरिणयाणं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! एकेन्द्रिय मिश्रपरिणतपुद्गल कितने प्रकारके कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (एवं जहा पओगपरिणएहिं नव दंडगा भाणियन्वा) जिस प्रकारसे प्रयोग परिणत पुदगलोंको लेकर नौ दण्डक कहे गये हैं उसी प्रकारसे मिश्रपरिणत पुद्गलोंको लेकर भी नव दण्डक कहना चाहिये । (तहेव सव्वं निरवसेसं नवरं अभिलावो मीसा परिणया भाणियन्वं सेसं तं चेव जाव जे पजत्तसव्वसिद्ध अणुत्तर जाव आययसंठाणपरिणया वि) इन दण्डकोंमें समस्तकथन प्रयोगपरिणत पुद्गलोंके जैमा ही जानना चाहिये । प्रयोगपरिणतपुद्गलोंकी अपेक्षा इन मिश्रपरिणत पुद्गलोंमें यदि कोई विशेषता है तो वह मिश्रपरिणत इस शन्दके उच्चारण करनेको लेकर है । अर्थात् मिश्रपरिणत पुद्गल विषयक जो आलापक कहा जावेगा उसमें (पयोगपरिणतपुद्गल) इस शब्दकी जगह 'मिश्रपरिणतपुद्गल' ऐसा शब्द प्रयुक्तकर कहा जावेगा बाकीका ५४२ नीय प्रमाणे छ- (एगिदिय मीसा परिणया जाव पंचिंदिय मीसापरिणया) એકેન્દ્રિય મિશ્રપરિણતથી લઈને પંચેન્દ્રિય મિશ્રપરિણત પર્યન્તના પાંચ પ્રકાર સમજવા. (एगिदिय मीसापरिणयाणं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता) ले महन्त ! मेन्द्रिय मिश्रपरिणत पुस । प्रा२ना छ१ (गोयमा!) 3 गौतम! (एवं जहा पओगपरिणएहिं नवदंडगा भणिया, एवं मीसापरिणएहिं वि नव दंडगा भाणियवा) रेशते प्रयोगपरिणत पुगतानी अपेक्षाय नव , એ જ પ્રમાણે મિશ્રપરિણત પુદગલોની અપેક્ષાએ પણ નવ દંડક કહેવા જોઈએ. (तहेव सव्वं निरवसेस-नवर अभिलावो मीसापरिणय। भाणियव्वं सेसं तंचेव जाव जे पज्जत्तसव्वट्ठसिद्ध अणुत्तर जाव आययस ठाणपरिणया वि) આ દંડકેમાં સમસ્ત કથન પ્રયોગ પરિણત પુદગલના કથન પ્રમાણે જ સમજવું. પ્રયોગપરિણત પુદગલોના અભિલા કરતા મિશ્ર પરિણત પુદગલેના અભિલાષામાં આટલી જ વિશેષતા છે કે – આ આલાપમાં “પ્રાગપરિણત પુદગલે” કહેવાને બદલે श्री. भगवती सूत्र :
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy