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________________ पमेयचन्द्रिका टीका. श.६. उ.७ सू.३ उपमेयकाल-स्वरूपनिरूपणम् ६१ वदन्ति आदि प्रमाणानाम् ॥१॥ अनन्तानां परमाणुपुद्गलानां समुदयसमिति समागमेन सा एका उत्श्लक्ष्णश्लणिका इति वा, श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका-इति वा, ऊर्ध्व रेणुः-इति वा, त्रसरेणुः-इति वा, रथरेणुः-इति वा, बालाग्रमिति वा, लिक्षा इति वा, यूका इति वा, यरमध्यम् इति वा, अङ्गलम्-इति वा, अष्ट उत्श्लक्ष्ण श्लक्ष्णिका सा एका श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, अष्टश्लक्ष्णश्लक्ष्णिका सा एका ऊर्ध्वरेणवः, सा एका त्रसरेणुः, अष्ट त्रसरेणवः सा एका रथरेणुः, अष्ट रथरेणवः तत् एकं देवकुरू-त्तरकुरुकाणां मनुष्याणां बालाग्रम्, एवं हरिवर्षछेत्तु भेत्तुंच ज किर न सका, तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं) सुतीक्ष्ण शस्त्र के द्वारा भी जिसका छेदन भेदन नहीं हो सकता है ऐसे उस परमाणुको ज्ञानसिद्ध भगवान्ने अर्थात् केवलज्ञानीने समस्त प्रमाणों का आदिभूत प्रमाण कहा है। ( अणंताणं परमाणु पोग्गलाणं समुदयसमिइ समागमेणं सा एगा ओमण्हसण्हिया इवा, सहसण्हियाइ वा, उड्ढरेणूइ वा, तसरेणूइ वा, रहरेणूइ वा, बालग्गाई वा, लिक्खाइ वा, जूयाइ वा, जवमज्झेइ वा, अंगुलेइ वा) अनंत परमाणु पुद्गलों के समिति समुदाय के मिलने से एक उतश्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, श्लक्ष्णश्लक्षिणका, पवरेणु, प्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका, यवमध्य एवं अंगूल होता है । (अट्ठ उस्सह सण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया, अट्ठसहसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणु, अट्ठउडूढरेणुओ सा एगा तसरेणु, अट्ठतसरेणुओ सा एगा रहरेणू , अट्ठरहरेणूओ से मुतिक्षेण, वि छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सक्का, तं परमाणु सिद्धा बयंति आई पमाणाणं) सूतीक्ष श १ ५ रेनु छेदन हन 5 8 नया सेवा તે પરમાણુને જ્ઞાનસિદ્ધ ભગવાને એટલે કે કેવળજ્ઞાનીએ સમસ્ત પ્રમાણેનું આદિભૂત मा ४ां छ. (अणंताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा ओसण्हसहियाइ वा, सह सण्डियाइ वा, उड्ढरेणूइ वा, तसरेणूई वा, रहरेणुइ वा, बालग्गाइ वा, लिक्खाइ वा, जूयाइ वा, जवमज्झेइ वा, अंगुलेइ वा) અનંત પરમાણુ પુદગલના સમૂહ રૂપ સમુદાયના સાગથી એક ઉતઉલણ valast, RAक्षy relest, , सरे, २थरेश, माला, सिक्षा, (ele), यू, (पू), यवमध्य भने भya थाय छे. (अट्ट उस्सह सण्हियाओ सा एगा सहसण्डिया, अठसण्हसण्डियाओ सा एगा उड्ढरेणु, अट्ठ उड्ढरेणी सा एगा तसरेणू, अट्ट तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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