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________________ ७६२ भगवती सूत्रे अन्त = भूमिभागम् अपक्राम्यति गच्छति, 'एग तमतं अवक्कमित्ता तुरए निगिण्ड ' एकान्तमन्तम् अपक्रम्य तुरगान् निगृह्णाति, 'तुरए निगिण्डित्ता रह ठar' तुरगान निगृह्य रथं स्थापयति 'रह ठवेत्ता, रहाओ पच्चोरुह ' रथं स्थापयित्वा रथात् प्रत्यवरोहति = अवतरति 'रहाओ पच्चोरुहिता तुरए मोएइ' रथात् प्रत्यवरुह्य = अवतीर्य तुरगान् मोचयति = रथात् पृथक् करोति 'तुर मोता तुरe विसज्जेह' तुरगान मोचयित्वा तुरगान् विसर्जयति = स्वस्थाने प्रेषयति 'तुर विसज्जित्ता दव्मस थारगं संथर' तुरगान् विस दर्भस स्तारकं संस्तृणाति विस्तारयति 'संथरित्ता दव्मस थारगं दूरुहः' सस्तीर्य = आस्ती दर्भसंस्तारकम् आरोहति=तदुपरि उपविशति, 'दग्भसंथारगं दूरुहित्ता, पुरत्याभिमुद्दे संपलियं कनिसन्ने करयल - जाव कट्टु एवं वयासी - ' दर्भ ये 'डिनिक्खमित्ता एगंतमंतं अवकम' विमुख होकर वे किसी एकान्त स्थानमें चले आये 'एगंतमंत अवकमित्ता तुरए निगिन्ह ' एकान्त स्थानमें आकर उन्होंने अपने घोड़ोंको खडाकर दिया 'तुरए निगिन्हित्ता हं ठवेइ' घोड़ों के खडे होते ही रथ खडा हो गया 'रहं ठवेत्ता रहाओ पचोरह' रथके खडे हो जाने पर वे उससे नीचे उतर आये 'रहाओ पच्चोरुहित्ता' नीचे उतरकर 'तुरए मोएइ' घोडोंको उन्होंने ढीलदिया रथसे अलग कर दिया तुरए मोएत्ता तुरए विसज्जे ' और अलग करके उन्हें उनके स्थानपर भिजवा दिया 'तुरए विसज्जित्ता' घोडोंको यथास्थान भिजवाकर 'दग्भसंधारणं संथर' फिर उन नागपौत्र वरुणने दर्भका संधारा बिछाया 'संथरित्ता दग्भसंथारगं दूरुहइ' दर्भका संथारा बिछाकर वे उस पर बैठ गये 'दभसंथारगं दुरुहिता पुरुथाभिमु संपलियंकनिसन्ने करयल जाव कट्टु एवं वयासी' नाणी गया. 'पडिणिक्खमित्ता एगंतमंत अत्रकमइ' त्याथी नीडजीने तेथे। औष्ठ शोअन्त भय्या याया आव्या 'एगंतमतं अत्रकमित्ता तुरए निगिण्हर' मेन्त स्थाने भावाने तेभो घोडाने बोलावी दीघां, 'तुरए निगिण्हित्ता रह ठवेई' घोडाने थेोभवतां ४ २८ अलो रही गया. 'रह ठवेत्ता रहाओ पचोरुहइ' २थ अल रखेतां तेथे। रथ उपस्थी नीचे उतरी गया, 'रहाओ पच्चोरु हित्ता तुरए मोएइ ' २थ उपरथी नाथे उतरीने तेभो घोडामाने रथथी अलग अरी हीघा, 'तुरए मोहत्ता तुरए त्रिसज्जेइ' घोडामाने स्थथी अलग उरीने छूटा भूडी हीघां. 'तुरए विसज्जित्ता' डाने भुक्त उरीने 'दव्भ संथारगं सथर' ते हर्मन संथा छाव्या. संथरित्ता दब्भसंधारगं दुरुह ' हर्मनो संथारे। मिछावीने तेना पर मेसी गया. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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