SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 756
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३८ भगवतीसूत्रे संग्रामात् प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य, एकान्तमन्तम् अपक्रामति, एकान्तमन्तम् अपक्रम्य तुरगान् निगृह्णाति, तुरगान् निगृह्य रथं स्थापयति, रथं स्थापयित्वा रथात् प्रत्यवरोहति, रथात् प्रत्यवरुह्य तुरगान् मोचयति, तुरगान् मोचयित्वा तुरगान् विसृजति, तुरगान् विसृज्य दर्भसस्तारकं संस्तृणाति, दर्भमस्तारकं संस्तीर्य दर्भसंस्तारकम् आरोहति, दर्भशारीरिक सामर्थ्य से रहित हो गया. मन उसका युद्ध करने से गिर गया- मानसिक शक्ति उसकी क्षीण हो गई, पुरुषकार पराक्रम से वह शून्य हो गया. 'अतः ऐसी स्थिति वाला बनकर मैं अब इस युद्ध में टिक नहीं सकंगा' इस प्रकार अपने आपको समझकर उसने घोडों को वहीं पर थाम लिया- अर्थात् आगे नहीं बढने दिया- बादमें वहां से उसने अपने रथको पीछे मोड लिया (रहं. परावित्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमइ-पडिनिक्खमित्ता एगंतमंतं अवकमइ) रथ को पीछे मोडकर वह उस रथमुसल संग्राम से वापिस हो गया. वापिस हो कर फिर वह एकान्तस्थान में चला आया (एगंतमंतं अवकमित्ता तुरए णिगिण्हइ) वहां आकर उसने घोडो को खडा कर वाया (तुरए णिगिणिहत्ता रहं ठवेइ, रहं ठवेत्ता रहाओ पचोरुहइ) घोडों को खडे करवाकर रथको खडा किया- रथके खडे हो जाने पर फिर वह रथ से नीचे उतरा. (रहाओ पञ्चोरुहितो तुरए पोएइ, तुरए मोएत्ता तुरए विसज्जेइ तुरए विसजित्ता दब्भसंथारगं संथरइ) रथ से नीचे उतर कर उसने घोडों को रथ से તેની માનસિક શકિત ક્ષીણ થઈ ગઈ અને તે પુરુષકાર પરાક્રમથી રહિત થઈ ગયે. “હવે હું આ પરિસ્થિતિમાં યુદ્ધમાં ટકી શકીશ નહીં,' આ પ્રમાણે વિચાર કરીને, તેણે ઘેડાને ત્યાં જ થોભાવ્યા, અને ત્યાર બાદ તેણે ત્યાંથી પિતાના રથને પાછો વાળે. (रहं परावित्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खमइ-पडिनिक्खमित्ता एगंतमंतं अवक्कमड) २यने पाछे पाणीन ते २यभुसण सयाममाथी पाछ। शश गयो, भने त्यांथी पाछा शनते ४ आन्त स्थाने यायो गयो. एगंतमत अवक्कमित्ता तुरए णिगिण्डइ) त्यां पडांयीन तेणे घाने याव्या. तुरए णिगिण्हित्ता रहे ठवेइ, रहं ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहइ) घोडाने यभावान तो २यने असा भ्या, २थने ५४ावाने ते २५ ५२था नाय तो. (रहाओ पच्चोरुहित्ता तुरए मोएइ, मोएत्ता तुरए विसज्जेइ, तुरए विसज्जित्ता दव्भसथारगं संथरड) २५ ५२थी નીચે ઉતરીને તેણે ઘેડાને રથથી છૂટા કર્યા, છૂટા કરીને તેમને છૂટા મૂકી દીધાં, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy