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________________ ६९४ भगवती सूत्रे सति कूणिकः किं कृतवानित्याह- 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से कोणिए राया महासिला कंटयं संग्रामं उवद्वियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सहावे ' ततः महाशिलाकण्टकसंग्राम विकुर्वणानन्तरं खलु स कूणिको राजा महाशिलाकण्टकं नाम संग्रामम् उपस्थितं ज्ञात्वा कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति आह्वयति 'सदावित्ता एवं वयासी' - शब्दयित्वा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अत्रादीत - 'विप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उदाई हस्थिरायं पडिकप्पेह' भो देवानुप्रियाः ! क्षिप्रमेव शीघ्रमेव 'उदाई' तन्नामानं हस्तिराजं पट्टहस्तिनं परिकल्पयत सज्जीकुरुत यूयम्, 'हय-गय-रह- जोह-कलिय चाउरंगिणि सेणं सम्नाहेह' हय- गज-रथ-योधकलितां घोटकहस्ति शकट-भटयुक्तां चतुरङ्गिणीं सेनां सन्नाहयत = सन्नद्धां कुरुत यूयम्, 'सन्नाहेत्ता मम एयमाणत्तिय खियामेव पच्चविणह' सन्नाह्य = सन्नद्धीकृत्य मम एताम् आज्ञप्तिकाम्=आज्ञां क्षिममेव इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'तएण से कूणिए राया महासिलाकंटयं संगामं उवद्वियं जाणित्ता कोटुंबियपुरिसे सदावेह' हे गौतम! जब चमर के द्वारा महाशिलाकंटकसंग्राम विकुर्वित हो चुका तब कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया - 'सद्दावित्ता एवं वयासी' बुलाकर उनसे उसने ऐसा कहा - 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! उदाई हस्थिरायं पडिकप्पेह' हे देवानुप्रियों ! तुम लोग बहुत ही जल्दी उदायी नामके पहहाथी को सज्जित करो - 'हय-गय-रह- जोहक लियं चाउरंगिणं सेणं सन्नाहेद' तथा घोडा, हाथी, रथ और योधाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को भी सज्जित करो । 'सन्नाहेत्ता मम एयमाणन्तियं खिप्पामेव पञ्चष्पिणह' सज्जित करके फिर हमें पीछे से शीघ्र ही मेरी आज्ञा के अनुसार तुमने सब काम कर लिया है ऐसी ४२ - 'तणं से कूणिए राया महासिलाकटयं संगामं उवद्वियं जाणित्ता कोडु बियपुरिसे सहावे' हे गौतम! न्यारे यभर द्वारा महाशिलाईट सौंग्रामनी વિકુણા થઇ ચુકી, ત્યારે કૂશિક રાજાએ પોતાના કુટુંબના માણસોને ખેલાવ્યા. 'सावित्ता एवं वयासी' अने तेमने मोसावीने या प्रमाणे - 'खिप्पामेव भो देवापिया ! उदाई हत्थरायं पडिक पेह' हे हेवानुप्रियो ! तमे हस्तिरान उधायीने तुरत सन्न्न ४. 'हय-गय-रह- जोहकलिय चाउर गिणिं सेणं सन्नाह' तथा घोडा, हाथी, २थ भने योद्धा गोथी युक्त यतुरंगी सेना तैयार . ' सन्नाहेत्ता मम एयमाणत्तिय खिप्पामेव पच्चष्पिणह' हाथी तथा सेनाने सन्न पुरीने तुरतन મને ખબર આપે! કે આપની આજ્ઞાનુસાર સઘળી તૈયારી થઇ ગઈ છે.’ तणं ते " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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