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________________ भगवतीसूत्रे पश्च संवत्सराः युगः, विशतिर्युगाः वर्षशतम्, दशवर्षशतानि सहस्रम शतं वर्ष सहस्राणां वर्षशतसहस्रम्, चतुरशीतिवर्षशतसहस्राणि तदेकं पूर्वाङ्गम्, चतुर शीतिः पूर्वाङ्गाणि शतसहस्राणि तद् एकं पूर्वम्, एवं त्रुटिताङ्गम्, त्रुटितम्, अटटाङ्गम्, अटटम्, अववाङ्गम्, अववम् , हूहूकाङ्गम्, हूहूकम् उत्पलाङ्गम्, उत्पलम्, पद्माङ्गम्, पद्मम्, नलिनाङ्गम्, नलिनम्, अर्थनिपूराङ्गम्, अर्थनिपूरम्, अयुताङ्गम्, अयुतम्, प्रयुताङ्गम्, प्रयुतम, नयुताङ्गम्, नयुतं च, चूलिकाङ्गम्, चूलि(दो अयणाई संवच्छरे) दो अयनों का एक संवत्सर होता है। (पंच संवच्छराई जुगे) पांच संवत्सरका एक युग होता है । (वीस जुगाई वाससयं) वीस युग के एक सो १०० वर्ष होते हैं। (दस वाससयाई वाससहस्स) दश सौवर्ष का एक हजार वर्ष होता है। (सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्स) एक सो १०० हजार वर्षों का एक लाख वर्ष होता है (चउरासीयं वाससयसहस्साणि से एगे पुव्वंगे) ८४ लाख वर्षा का एक पूर्वाङ्ग होता है । (चउरासीइं पुव्वंगा सयसहस्साई से एगे पुब्वे) चौरासी लाख पूर्वागका एक पूर्व होता (एवं तुडिअंगे, तुडिए, अडगे, अडडे, अववंगे, अववे, हूहूअंगे हूहूए, उप्पलंगे उप्पले पउमंगे पउमे, नलिणंगे नलिणे अत्थनिउरंगे अस्थनिउरे अऊअंगे अउए पउअंगे पउए य, नवुअंगे नवुए य, चलीअंगे, चूलिआ य, सीसपहेलिअंगे, सीसपहेलिया, एतावतावगणिए-एतावतावगणियस्स विसए-तेण परं उवमिए ) इसी तरह से त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग याय , (दो अयणाई सवच्छ रे) मन में अयनानु मे थाय छे. पंच संवच्छराई जुगे) पांच वर्षानी में युग थाय छे. (वीसं जुगाई वाससयं) वीस युगाना में से। (१०० वष") याय छे. (दस वाससयाई वाससहस्स)स समान। समूड समूह भजीने मे १२ वर्ष थाय छे. (सयं व ससहस्साणं वाससयसहस्स) १०० १२ वर्षाना सहने मे atm वर्ष 2. ( चउरासीई वाससयसहस्साणि से एगे पुनगे) ८४ १५ ागर्नु 'yq" थाय छे. (चउरासीई पुच्चंगा सयसहस्सा से एगे पुब्वे) ८४ तास पुर्वा गर्नु ४ पूर्व' थाय छ. (एवं तुडीअंगे, तुहिए, अडडंगे, अडडे, अववंगे अबवे, हूहूअंगे, हूहूए, उप्पलंगे, उप्पले, पउमंगे, पउमे, नलिणंगे, नलिणे, अस्थनिऊर गे, अत्यनिउरे, अऊअंगे अजए, पउअंगे पउएय, नवुअंगे नबुए य, चूलीअंगे चूलिआ य, सिसपहेलि अंगे सीसपहेलिया, एतावतावगणिए - एतावतावगणियरस विसए - तेण पर उपमिए) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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