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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. ६ सू. २ कामभोग निरूपणम्
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भोगाः । सचित्ताः भदन्त ! भोगाः, अचित्ताः भोगाः ? गौतम ! सचित्ता अपि भोगाः, अचित्ता अपि भोगाः । जीवाः खलु भदन्त ! भोगाः ? पृच्छा, गौतम ! जीवा अपि भोगाः अजीवा अपि भोगाः । जीवानां भदन्त ! भोगाः अजीवानां भोगाः ? गौतम ! जीवानां भोगाः, नो अजीवानां भोगाः कतिविधाः खलु भदन्त ! भोगाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! त्रिविधाः भोगाः प्रज्ञप्ताः ? तद्यथा - गन्धाः, रसाः, स्पर्शाः । कतिविधाः खलु भदन्त ! कामभोगाः (सचित्ता भंते भोगा, अचित्ता भोगा ) हे भदन्त ! भोग सचित्त हैं कि भोग अचित्त हैं ? (गोयमा ! सचित्ता वि भोगा, अचित्तावि भोगा) हे गौतम! भोग सचित भी हैं और भोग अचित्त भी हैं। (जीवा णं भंते ! भोगा पुच्छा ?) हे भदन्त ! भोग जीवरूप हैं कि भोग अजीवरूप हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा) भोगजीयरूप भी हैं और भोग अजीवरूप भी हैं। (जीवा णं भंते ! भोगा, अजीवाणं भोगा ) हे भदन्त ! भोग जीवोंके होते हैं कि भोग अजीवोंके होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जीवाणं भोगा, नो अजीवाणं भोगा) भोग जीवोंके होते हैं, भोग अजीवों के नहीं होते हैं । ( कइ विहा णं भंते ! भोगा पण्णत्ता' हे भदन्त ! भोग कितने प्रकार के कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिविहा भोगा पण्णत्ता) भोग तीन प्रकारके कहे गये हैं । (तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं (गंधा, रसा, फासा) गंध, रस और स्पर्श । (कइविहाणं ( सचित्ता भंते भोगा, अचित्ता भोगा ) हे लहन्त ! लोग सथित छे. हे लोग व्यथित छे ? ( गोयमा ) सचित्तावि भोगा अचिता वि भोगा ) हे गौतम ! लोग सयित्त पशु है भने लोग अत्ति पशु छे. ( जीवाणं भंते ? भोगा पुच्छा ?) से लहन्त ! लोग लव३५ छे, है लोग व३५ छे ? (गोयमा !) हे गौतम! (जीवा वि भोगा, अजीवा वि भोगा ) लोग लव३५ पशु छे भने मकव३५ पशु छे. (जीवा णं भंते ! भोगा, अजीवाणं भोगा ) हे महन्त ! लोगने। सद्भाव लवोभां होय छे, लवेमां होय छे ! ( गोयमा ! जीवाणं भोगा, णो अजीवाणं भोगा ) हे गौतम! लोगो सहभाव वामां होय छे, अलवामां लोगो सहलाव होतो नथी. ( कइ विहाणं भंते ! भोगा पण्णत्ता ?) हे लहन्त ! लोग डेंटला अारना उद्या छे ? (गोयमा ! तिविहा भोगा पण्णत्ता - तंजहा) हे गौतम! लोगना नीचे प्रभाो अगर पड़े छे - (गंधा, रसा, फासा) (1) गंध, (२) रस ने (3) स्पर्श (कइ विहाणं भंते ! कामभोगा पण्णत्ता ?) हे महन्त ! अमलोग
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ