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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.२ सू. ५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ४७७ न तद् वेदयिष्यन्ति । ‘एवं नेरइया वि, जाव-वेमाणिया' एवं समुच्चयजीववेदनादिवदेव नैरयिका अपि यावत्-भवनपतिमारभ्य वैमानिकान्ताः यद् वेदयिष्यन्ति, न तद् निर्जरयिष्यन्ति, यद् निर्जरयिष्यन्ति न तद् वेदयिष्यन्ति गौतमः पृच्छति-से गूणं भंते ! जे वेयणा समए से निज्जरासमए, जे णिज्जरा समए से वेयणा समए ?' हे भदन्त ! अथ नूनं निश्चयेन किं यो वेदना समयः स एव निर्जरासमयः, यो निर्जरासमयः स एव वेदनासमयः ? भगवानाह-'णो इणटे समढे' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नो वेदनासमय
और जिस कर्मकी वे निर्जरा करेंगे उसी कर्म का वे वेदन करेंगे। 'एवं नेरझ्या वि जाव वेमाणिया' हे गौतम ! इसी तरह से समुच्चय जीवके वेदनादि की तरह से ही-नैरयिक भी यावत् भवनपति से लेकर वैमानिक देवतक ऐसा ही जानना चाहिये कि जिस कर्म का वेदन करेंगे उसी कर्म की वे निर्जरा नहीं करेंगे तथा जिस कर्मकी वे निर्जरा करेंगे उसी कर्मका वे वेदन नहीं करेंगे । ___अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि-' से गूणं भंते ! जे वेयणासमए से णिजरा समए जे णिज्जरासमए से वेयणासमए' हे भदन्त ! क्या वह निश्चित है कि जो वेदनाका समय है, वही निर्जरा का समय है और जो निर्जरा का समय है क्या वही वेदनाका समय है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं कि-'णो इणढे समटे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् जो वेदनाका तमा ने मन (२॥ ४२0 मर्नु तमना ६॥वहन ४२॥ नहीं एवं णेरइया वि जान वेमाणिया' समुच्यय ८१ र ४यन नासाना विषयमा પણ સમજવું. અને ભવનપતિથી લઈને વૈમાનિકે સુધીના દેવોના વિષયમાં પણ એવું જ કથન સમજવું. એટલે કે નારકથી લઈને વમાનિક પર્યન્તના જીવો જે કર્મનું વદન કરશે, એ જ કર્મની નિર્જરા નહીં કરે, અને તેઓ જે કર્મની નિર્જરા કરશે, એ જ કર્મનું वहन नहीं ४२.
वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सो प्रश्न पूछे छे से गृणं भंते ! जे वेयणासमए से णिज्जरासमए जे गिजरा समए से वेयणासमए ? 3 word ! શું એ વાત સાચી છે કે જે વેદનાને સમય છે, એ જ નિર્જરાને સમય છે, અને જે નિજવાનો સમય છે, એ જ વેદનનો સમય છે ?
तेने उत्तर मापता महावीर प्रभु ४९ छ- 'गोयमा! णो इणद्वे समडे' હે ગૌતમ એ વાત સાચી નથી. એટલે કે જે વેદનાને સમય હોય છે, એ જ નિજેરાને.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫