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________________ ४३८ भगवतीमत्रे भगवानाह-'गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा पुढवीजीवपडिबद्धा, तम्हा परिणामें ति' हे गौतम ! मूलानि मूलजीवस्पृष्टानि पृथिवीजीवमतिबद्धानि पृथिवीकायिकजीवैः सह सम्बद्धानि, तस्मात्-पृथिवीजीवसम्बन्धात् मूलजीवाः पृथिवीरसम् आहरन्ति तस्मात्-पृथिवीजीवेन सह सम्बन्धात् तत्तद्रूपरसादितया परिणमयन्ति परिणतिमुपनयन्ति, एवम् 'कंदा कंदजीवफुडा मूलजीवपडिबद्धाः तम्हा आहारैति, तम्हा परिणामें ति' कन्दाः कन्दजीवः स्पृष्टा व्याप्ताः मूलजीवप्रतिबद्धाः सन्ति तस्मात् मूलजीवसम्बन्धात् आहरन्ति मूलजीवोपात्तं पृथिवीरसम् आहारतया गृहन्ति गृहीतमाहारं तत्तदुपरसतया परिणमयन्ति च' 'एवं जाव-बीयाबीय जीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परि. अन्यत्र भी जानना चाहिये । इसी बातको प्रभुने 'गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा, पुढवीजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेति' तम्हा परिणामेंति इस सूत्रांश द्वारा प्रकट किया है । वृक्षके मूल भागोंके जीव यद्यपि उन्हीं में रहते हैं पृथिवीमें नहीं रहते हैं फिर भी वे मूलगतजीव पृथिवीकायिक जीवोंके साथ सम्बद्ध रहते हैं, इसलिये उस पृथिवी जीवोंके सम्बन्धसे मूलजीव पृथिवीके रसका आहरण करते हैं और तत्तद्रूप रसादिभाक्में उसे परिणमाते हैं । एवं कंदा कंदजीवपुडा मूलजीवपडिबद्धा, तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति' इसी तरहसे कंदगतजीव मूलगतजीवोंके साथ संबंधित होते हैं इसलिये वे मूलजीवोपात्त पृथिवीरमको आहाररूपसे ग्रहण करते हैं और उस गृहीत आहारको तत्तद्रूप रसभावमें पदिणमाते हैं "एवं जाव बीया बीय મેં જ પ્રમાણે કન્દગત જીવોને સંબંધ પણ મૂળગત છ સાથે રહે છે, તેથી મૂળગત છે દ્વારા તેમને પણ આહાર મળ્યા કરે છે. એ જ પ્રમાણે આગળ પણ ઉત્તરોત્તર समय समय पातन महावीर प्रभुमे 'गोयमा! मला मूलजीवफडा, पुढवीजीव पडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामें ति' मा सूत्रया द्वारा ગૌતમ સ્વામીને સમજાવી છે. વૃક્ષના મૂળનાં છ જે કે મૂળમાં જ રહે છે–પૃથ્વીમાં રહેતા નથી, તે પણ તે મૂળગત છે પૃથ્વીકાયિક જીવોની સાથે સંબદ્ધ રહે છે. તેથી મૂળજી પૃથ્વીના રસને આહારરૂપે ગ્રહણ કરે છે અને તેને ખબરસ આદિ રૂપે परिणभावे छे. 'एवं कंदा कंदजीच फुडा, मूलजीवपडिबद्धा, तम्हा आहारति, तम्हा परिणामें ति' से प्रभारी ४ात ७वी भूगरत वानी साथे सद्ध रहे છે, તેથી તેઓ મૂળગત છએ ગ્રહણ કરેલા પૃથ્વીરસને આહારરૂપે ગ્રહણ કરે છે અને गृहीत माहारने ते ते ३५ २समाव परिणभाव छ. 'एवं जाव बीया बीयजीव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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