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________________ २.८ भगवतीसगे कोलट्ठियमायमवि जाव-उवदंसिचए ? हे गौतम ! शक्नुयात् पारयेत् खलु, कश्चित् तेषां घ्राणपुदगलानां जम्बूद्वीपव्याप्तजनघ्राणप्रविष्टगन्धपुद्गलानाम् कोलास्थिकमात्रमपि यावत्-निष्पावादिमात्रमपि अभिनित्य बहिः निष्कास्य उपदर्शयितुं शक्नुयात् ? इति पूर्वेणान्वयः । गौतमः प्राह-'णो इणढे समढे' हे भदन्त ! नायमर्थः समर्थः, तेषां जम्बूद्वीपव्याप्तजनघ्राणप्रविष्टगन्धपुद्गलानामतिसूक्ष्मतया अमूर्तसदृशत्वात् पिण्डाकारतयोपदर्शयितुं न शक्यते, भगवानाह-'से तेणढणं जाव-उवदंसेत्तए' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावतसित्तए' हे गौतम ! तो कोई ऐसा भी है जो उन घ्राण पुद्गलों को जम्बूद्वीपवर्ती जनों की प्राण इन्द्रिय में प्रविष्ट हुए गन्धपुद्गलों को कोलास्थिकमात्र भी- बेर की गुठली जितने भी बाहर निकाल करके यावत् दिखलाने के 'चक्किया' समर्थ है क्या? यहां यावत्पद से -'निप्पावमायमवि, कलममायमवि, माममायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायवि, लिक्खामायमवि अभिनिवर्दृत्ता' इस पाठ का संग्रह हुआ है। इस पर गौतम प्रभु से कहते है कि 'णो इण? समढे' हे भदन्त ऐसा अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो उन जम्बूद्वीपवर्तीजनों के घ्राणवर्ती गॅधपुद्गलों को उनकी नाक में से बेर की गुठली आदि जितनी भी मात्रा में बाहर निकालकर दिखला सके कारण कि-वे जम्बूद्वीप व्याप्त जन घ्राणवी गंध पुद्गल अतिसूक्ष्म होने के कारण अमूर्त जैसे होते हैं-इसलिये पिण्डाकार रूपमें उन्हें दिखलाने की शक्ति किसी भी व्यक्ति में नहीं हो सकती है। इस पर प्रभु उनसे कहते है 'से तेणट्टणं जाव उवदंसेत्तए' उवदंसित्तए' गौतम ! सुदीपती नानी प्राणेन्द्रियमा प्रदेशात अपुगतोમાંથી, બોરના ઠળિયાથી લઈને લીખ પર્યન્તના પ્રમાણ જેટલા ગંધપુદગલેને બહાર કાઢીને બતાવવાને શું કઈપણ વ્યકિત શકિતમાન હેય છે? અહીં “યાવત’ પદથી વાલ પ્રમાણ, વટાણું પ્રમાણ, અડદ પ્રમાણુ, મગ પ્રમાણ, જૂ પ્રમાણુ અને લીખ પ્રમાણુને બહાર કાઢીને” આ સૂત્રપાઠ ગ્રહણ થયેલ છે. गौतम स्वामी हे छ- 'णो इणढे समद्रं' 3 tra ! ४५ व्यति એવું કરી શકતી નથી. જંબૂઢીપવતી, લેકેની ધ્રાણેન્દ્રિયમાં પ્રવેશેલાં ગપુદગલો અતિ સૂક્ષમ હોવાને લીધે અમૂર્ત જેવાં જ હોય છે. તેથી પિડાકાર રૂપે તેમને બતાવવાની શકિત કેઈપણ વ્યક્તિમાં સંભવી શકતી નથી. તેથી બેરના ઠળિયા જેટલાં ગધપુદગલેને ५९ मा पढी मतावान भ प पति ४यती नथी. 'से तेणटेणं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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