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________________ २०२ भगवतीसूत्रे हन्त, स्पृष्टः। शक्नुयात् गौतम ! कश्चित् तेषां घ्राणपुद्गलानां कोलास्थिकमात्रमपि यावत्--उपदर्शयितुम् ? नायमर्थः समथः, तत् तेनार्थेन यावत्उपदर्शयितुम् ॥ १॥ टीका-नवमोद्देशकान्ते अविशुलेद्धश्यस्य ज्ञानाभावः प्रतिपादितः, अथदशमोद्देशकेऽपि तमेव ज्ञानाभावम् अन्यतीर्यिकमाश्रित्य प्रतिपादयितुमाह'अण्णउत्थिया णं भंते' इत्यादि । 'अण्णउत्थिया णं भंते ? एवं आइक्खंति, स्पर्शित हो जाता है कि नहीं ? (हंता फुडे) हां, भदन्त ! वह सम्पूर्ण जम्बूद्वीप उन गंधपुद्गलों से स्पर्शित हो जाता है। (चकिया णें गोयमा! केइ तेसिं घणपोग्गलाणं कोलटिमायमवि जाव उवदंसित्तए? णो इणटे समटे, से तेणटेणं जाव उवदंसेनए) तो कहो गौतम ! कोई क्या उन गंधपुद्गलों को उस समस्त जंबूद्वीप में से बेर की गुठली बराबर यावत् बाहर निकालकर दिखलाने के लिये समर्थ हो सकता है ? है भदन्त! यह अर्थ समर्थ नहीं है- तो इसी तरह से हे गौतम ! समस्त लोकवर्ती जीवों के मुखादिकों को भी उनमें से बेर की गुटली आदि जितना भी बाहर निकाल कर कोई नहीं दिखला सकता है। ___टीकार्थ-नौवे उद्देशक के अंत में अविशुद्धलेश्यावाले में सम्यग्ज्ञान का अभाव प्रतिपादित किया गया है। दशवें उद्देशक में भी इसी सम्यग्ज्ञान का अभाव अन्यतीर्थिकजनको आश्रित करके सूत्रकार प्रकट कर रहे हैं इस में गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि २५ 3 नही ? (हता फुडे) 1, मावन् ! सपू १५ ते गाथा २५शि. (चक्कियाणं गोयमा ! केइ तेसिं घणपोग्गलाणं कोलढिमायमवि जाव उवदंसित्तए ? णो इणढे समठे, से तेणटेणं जाव उवइंसेत्तए) 3 गोतम ! मुं કઈ વ્યકિત તે ગંધપુદગલોને, બોરના ઠળિયાથી લઇને લીખ પર્યરતના પ્રમાણમાં પણ સમસ્ત જ બૂઠીપમાંથી બહાર કાઢીને બતાવવાને સમર્થ હોય છે? गौतम स्वामी वाम माछ- महन्त! मे सलवीतुनया. મહાવીર પ્રભુ કહે છે- “હે ગૌતમ! એજ રીતે સમસ્ત લેકના જીવનમાં સુખ અને હેઃખને બારના ઠળિયા આદિ જેટલાં પણ બહાર કાઢી બતાવવાને કઈ સમર્થ નથી. ટીકાર્થ- નવમાં ઉદ્દેશકને અન્ત અવિશુદ્ધ વેશ્યાવાળા છમાં સમ જ્ઞાનના અભાવનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. આ દસમાં ઉરાકમાં પણ સૂત્રકાર એજ સમક્જ્ઞાનના અભાવનું અન્યતીર્થિક જનેને અનુલક્ષીને કથન કરે છે. આ વિષયને मनुक्षीन गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रा पूछे छे 3- 'अण्णउस्थियाणं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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