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________________ १८६ भगवतीसूत्रे ( नायमर्थः समर्थः इति ) ' न जानाति न पश्यति' । उपरितनेषु (अन्तिमेषु ) चतुर्षु' 'जानाति पश्यति' । तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! || ३ || टीका - देवाधिकारात् तद्विशेषवक्तव्यतामाह - 'अविसुद्धले से णं' इत्यादि । 'अविसुद्धलेस्से णं भंते ! देवे असमोहए णं अप्पाणेणं अविमुद्धलेस्सं देवं देवि, वालादेव उपयुक्त अनुपयुक्त आत्मा द्वारा विशुद्धलेश्यावाले देवको, देवीको तथा इन दोनों में से किसी एकको जानता और देखता है ? (हंता जाणइ पासइ) हां, गौतम ! विशुद्धलेश्यावाला देव उपयुक्त अनुपयुक्त आत्मा द्वारा विशुद्धलेश्यावाले देवको, देवीको तथा इन दोनोंमेंसे किसी एक को जानता और देखता है । ( एवं हेट्ठिल्लएहिं अट्ठहिं न जाणड़ न पासइ, उवरिल्लेहिं जाणइ पासइ) इस तरह नीचे के आठ भंगों द्वारा देव जानता नहीं है देखता नहीं है और ऊपर के चार भंगों द्वारा वह जानता है और देखता है । (सेवं भंते ! सेव भंते ! ) हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह सर्वथा सत्य है है भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह सर्वथा सत्य है । टीकार्थ- देवका अधिकार चल रहा है इस कारण इस विषय में जो विशेष वक्तव्यता है उसे सूत्रकार प्रकट कर रहे हैं इसमें गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि 'अविसुद्धलेस्से णं भंते । देवे' पासइ ? ) डे महन्त ! विशुद्धमेश्यावाणी देव शु उपयुक्त अनुपयुक्त मात्मा द्वारा વિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા દેવ અને દેવીને, અથવા અન્ય કાઇને જાણી શકે છે અને દેખી શકે छे ? ( हंता, अत्थि ) डा, गौतम ! विशुद्ध बेस्यावाणो देव उपयुक्त अनुपयुक्त આત્મા દ્વારા વિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા દેવ અને દેવીને, અથવા તે બન્નેમાંના કાઇ એકને भागी राडे छे भने हेभी शडे छे. ( एवं हेलिएहिं अट्ठहिं न जाणइ न पास, उवरिल्लेहिं चउहिं जाणइ पासइ) भी रीते पहेला आहे लगो ( वियो ) द्वारा દેવ જાણતા નથી અને દેખતે નથી, પણ છેલ્લા ચાર ભગા દ્વારા જાણે છે અને દેખે છે. ( सेवं भंते । सेवं भंते ! त्ति ) हे महन्ता खाये थे अधु ते सत्य ४ छे. હે ભદન્ત ! આપે જે કહ્યું તે સથા સત્ય છે. ટીકા – દેવના અધિકાર ચાલી રહ્યો છે, તે કારણે આ વિષયનું વિશેષ પ્રતિપાદન કરવાને માટે સૂત્રકાર નીચેના પ્રશ્નોત્તર પ્રકટ કરે છે— गौतम स्वाभी महावीर अलुने सेवा अभ पूछे छे ! अविसुद्धलेस्सेणं भंते ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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