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________________ - - १३६ भगवतीसको द्वादशमाह-'जीवाणं भंते ! कि जाइनामगोयनिउत्ताउया? हे भदन्त ! जीवा खलु कि जातिनामगोत्रनियुक्तायुष्काः ? जातिनाम्ना गोगेण च सह नियुक्तं निकाचितमायु यैस्ते जातिनामगोनियुक्तपुष्काः भवन्ति ? एवमन्येऽपि पञ्च । भगवानआह-गोयमा ! जाइनामगोपनिउत्ता वि. जाव अणुभागनामगोय निउत्ताउया वि' हे गौतम ! जीवाः खलु जातिनामगोत्रनियुक्तायुष्का अपि भवन्ति, यावत्-अनुभागनामगोत्रनियुक्तायुष्का अपि भवन्ति, यावत्करणात् गतिस्थित्यवगाहनाप्रदेशाः संग्राह्याः, 'दंडो जाव चेमाणियाणं' दण्डको यावद् वैमानिकानाम् । अयं भावः यथा समुच्चयजीवमाश्रित्य द्वासप्तति प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते हैं 'जोवाणं भंते ! किंजाइनामगोय निउत्ताउया' इसमें प्रभु से गौतमस्वामीने ऐसा पूछा है कि हे भदन्त ! जीव क्या जातिनाम गोत्रनियुक्तायुष्क होते हैं ? जातिनाम और गोत्रके साथ जिन जीवोंने आयुको निकाचित किया है वे जीव जातिनामगोत्र नियुक्तायुष्क हैं। इसी प्रकारसे अन्य पांच पद भी जानना चाहिये। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'जाइनामगोपनिउत्ता उमावि जाव अणुभागनामगोयनिउचाउया वि' जीव जातिनाम गोत्र नियुक्तायुष्क भी होते हैं यावत् अनुभाग नामगोत्र नियुक्तायष्क भी होते हैं। यहां यावत् पदसे गति, स्थिति, अवगाहना और प्रदेश इनका ग्रहण हुआ है। __ 'दंडओ जाव वेमाणियाणं' इसका भाव इस प्रकारसे है किजिस तरह समुच्चयजीवको आश्रितकर ७२ मेदात्मक दंडक प्रतिपादित समा. वे सूत्र२ मारमा l X४ ४२ छ- “जीवाणं भंते ! कि जाइनामगोय निहत्ताउया?" 3 महन्त ! शु० जतिनाम गोत्र नियत्तामु०४ लायछ ? तिनाम અને ગેત્રની સાથે જે જીએ આયુને નિકાચિત કર્યું હોય છે, એવાં જેને “જાતિનામ ગેત્ર નિધત્તાયુષ્ક” કહે છે. એ જ પ્રમાણે ગતિ આદિ અન્ય પાંચ પદના વિષયમાં પણ સમજવું. ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નનો ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે"गोयमा!" गौतम ! “जाइनामगोयनिहत्ताउया विजाय अणुभागनामनिहत्ताउया वि" तिनामगोत्र नियत्तायु०४ ५७ डाय छ, भने गति, स्थिति, અવગાહના, પ્રદેશ અને અનુભાગનામશેત્રનિધત્તાયુષ્ક પણ હાથ છે. “ दंडओ जाव वेमाणियाणं " रे रीते सभुश्य पनी अपेक्षा ઉપર્યુકત ૭ર ભેદાત્મક (ભંગયુક્ત) દંડકનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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