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________________ अमेयचान्द्रका टीका श.६ उ.८ सू.१ पृथिवीस्वरूपनिरूपणम् मर्थः समर्थः । अस्ति खलु भदन्त ! चन्द्रामा इति वा० ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः । एवं सनत्कुमार-माहेन्द्रयोः, नवरम्-देवः एकः प्रकरोति । एवं ब्रह्म गेकेऽपि । एवम् ब्रह्मलोकस्योपरि सर्वत्र देवः प्रकरोति । प्रष्टव्यश्च बादरोऽकायः, बादरोऽनिकायः, बादरो बनस्पतिकायः, अन्यत् तदेव, गाथा-'तमस्कायः कल्पपश्चकेऽग्निः पृथिवी चाग्निः पृथिवीषु । आपस्तेजो वनस्पतिः कल्पोपरिमकृष्णराजीषु ॥सू० १॥ हे भदन्त ! वहां ग्रामसे लेकर सन्निवेश आदि हैं क्या ? (णो इणद्वे समट्टे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अस्थि णं भंते ! चंदाभाइ वा) हे भदन्त ! वहांपर चन्द्रकी प्रभा आदि हैं क्या ? (गोयमा) हे गौतम ! (णो इणटे समटे) यह अर्थ समर्थ नहीं हैं। (एवं सणंकुमार माहिंदेसु नवरं देवो एगो पकरेइ) इसी तरहसे सनत्कुमार भौर माहेन्द्र देवलोकमें भी जानना चाहिये विशेषता यहां पर केवल इतनी ही है कि यहां पर एक देव ही करता है (एवं बंभलोए वि एवं संभलोगस उवरि सम्वेहिं देवोपकरेइ, पुच्छियवोय बायरे भाउकाए, बायरे अगणिकाए, बायरे वणस्सइकाए, अण्णं तं चेव) इसी तरह से ब्रह्मलोकमें भी जानना चाहिये । इसी तरहसे ब्रह्मलोक के ऊपर समस्त स्थलोंमें देव करता है । तथा समस्त जगह बादर अपकाय, यादर अग्निकाय और बादर वनस्पतिकायके संबंध प्रश्न करना चाहिये। बाकी सब पूर्वको तरहसे ही है। गाहा-गाथा 1०) हे बह-त! त्यो मथी धन सन्निवेश मा छ ? (णोडणदे समदे) रे गौतम! म म माहिना सहभाव नथी. (अस्थिणं भंते ! चंदाभाइ वा०?) महन्त ! | त्यो यन्द्र, सूर्य माहिनी मरी? (णो इणदे समते) है गौतम! त्यां यन्द्राहिनी प्रमा समवी शती नयी. (एवं सणंकुमार माहिदेसुणवरं देवो एगो पकरेइ) 2 प्रमाणे सनत्भार भने माहेन्द्र पना વિષયમાં પણ સમજવું. વિશેષતા કેવળ એટલી જ છે કે તેમાં સંવેદન આદિ એક ३१॥ ४२ छ. (एव बंभलोए वि, एवं बंभलोगस्स उवरिं सम्वेहिं देवो पकरेइ, पुच्छियन्यो य बायरे आउकाए, बायरे अगणिकाए, बायरे वणस्सइकाए, अण्णं तंचेव) मे २४ प्रमाणे प्रक्षो ४६५ना विषयमा ५ सभा. मे प्रमाणे બ્રહ્મલેકથી ઉપરના સમસ્ત કલ્પમાં સંદન આદિ કેવળ દેવ જ કરે છે એમ સમજવું. તથા સમસ્ત જગ્યાએ બાદર અપકાય, બાદર અગ્નિકાય અને બાર વનસ્પતિકાયના સંબંધમાં પ્રશ્ન પૂછવો જોઈએ. બાકીનું સમસ્ત કથન પહેલાના કથન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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