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भगवतीसूत्रे
रम्-काययोगिनः एकेन्द्रियास्तेषु अभङ्गकम् । अयोगिनो यथा अलेश्याः । साकारोपयुक्ताऽनाकारोपयुक्तेषु जीवै केन्द्रियव स्त्रयो भङ्गाः । सवेदकाश्च यथा सकषापिणः । स्त्रीवेदक-पुरुषवेदक-नपुंसकवेदकेषु जीवादिकाखयो भङ्गाः । नवरम्नपुंसकवेदके एकेन्द्रियेषु अभङ्गकम् । अवेदका यथा अपायिणः । सशरीरी यथा औधिकः । औदारिक-वैक्रियशरीरेषु जीवैकेन्द्रियवर्जास्त्रयो भङ्गाः ।आहारक होते हैं । (नवरं-कायजोगी एगिदिया तेसु अभंगयं) विशेषता यह है कि एकेन्द्रिय जीव काययोगवाले होते हैं-इसलिये उनमें अधिक भंग नहीं होते हैं-एक भंग होता है। (अजोगी जहा अलेस्सा) जैसे अलेश्यावाले जीव कहे गये हैं वैसे ही अयोगी जीव जानना चाहिये। ( सागरोवउत्त-अणागारोवउत्तेहिं जीव एगिदियवज्जो तियभंगो ) साकारोपयुक्त अनाकारोपयुक्त जीवों में जीव एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। (सवेयगा य जहा सकसाई ) कषायवाले जीवों की तरह वेदवाले जीवों को जानना चाहिये । (इथिवेयग-पुरिसवेयग-नपुंसगवेयगेसु जीवाइओ तियभंगो) स्त्रीवेदकों में, पुरुषवेदकों में और नपुं. सकवेदकों में जीवादिक तीन भंग होते हैं। (नवरं-नपुंसगवेदे एगिदिएसु अभंगयं) विशेषता यह है कि नपुंसक वेद में, एकेन्द्रिय मे अधिक भंग नहीं होते हैं-किन्तु एक भंग होता है ( अवेयगा जहा अकसाई) जैसे कषायरहित जीव होते हैं वैसे ही वेदरहित जीव होते हैं। (ससवयनयी भने ४ाययोजामा
न थाय छ ( नवर-कायजोगी एगिदिया तेसु अभंगयं ) विशेषता मेटली ४ छ , मेन्द्रिय ०१ ययाવાળા જ હોય છે, તેથી તેમાં એક જ ભંગ થાય છે, વધારે ભંગ થતા નથી. ( अजोगी जहा अलेस्सा ) अयोगी 04 विषयमा अश्या प्रभा. हो समन्. (सागरोवउत्त, अणागरोवउत्तेहिं जीव एगिदियवज्जो तियभगो) સાકાર ઉપગવાળા અને અનાકાર ઉપગવાળા જીવમાં જીવ એકેન્દ્રિય पति एम थाय छे. ( सोयगा य जहा मकसाई) हवा लामा विषयमा ४पाययुत ७३ प्रमाणे सम. (इत्थिवेयग-पुरिसवेयग-नपुमगवेयगेसु जीवाइओ तियभंगो) श्री वेद, पुरुष वा भने नपुंस वहवासा वाम १ माथाय छे. ( नवर-नपुगवेदे एगिदिएसु अभंगय) तभ मेटली विशेषता छे नपुंस४ वहाणा मेन्द्रियमा मधिर म यता नथी, ५४ मे ४ थाय छे. (अवेयगा जहा अकसाई ) वहरहित वाना विषयमा ४ाय २डित । प्रभारी ४ सभा'. (ससरीरी
श्री. भगवती सूत्र:४