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________________ अमेयचन्द्रिका टीका २० १७० ४ ०१ जीवस्य सप्रदेशाप्रदेशनिरूपणम् ९५१ अकषायि-जीव-मनुजेषु सिद्धेषु त्रयो भङ्गाः। औधिकज्ञाने, आभिनिघोधिकज्ञाने, श्रुतज्ञाने जीवादिकाखयो भङ्गाः । विकलेन्द्रियेषु षड् भङ्गाः । अवधिज्ञाने, मनःपर्यवज्ञाने केवलज्ञाने जीवादिकास्त्रयो भङ्गाः । औधिकाऽज्ञाने, मत्यज्ञाने, श्रुताऽज्ञाने एकेन्द्रियवर्जास्त्रयो भङ्गाः। विभङ्गाज्ञाने जीवादिकास्त्रयो भङ्गाः। सयोगी यथा औधिकः । मनोयोगि-वचोयोगि-काययोगिषु जीवादिकास्त्रयो भङ्गाः, नव(अकसाई-जीव-मणुएहि सिद्धेहिं तियभंगो) कषायरहित जीवों में मनुष्यों में और सिद्धों में तीन भंग होते हैं। (ओहियणाणे-अभिणि. घोहियणाणे सुयणाणे जीवाइओ तियभंगो) औधिक ज्ञान में, आभि. नियोधिक ज्ञान में, श्रुतज्ञान में जीवादिक तीन भंग होते हैं। (विगलिदिएहिं छब्भंगा) विकलेन्द्रियों में छह भंग होते हैं। (ओहिणाणे मणपज्जवणाणे, केवलणाणे जीवाइओ तियभंगो) औधिक ज्ञानमें मनः पर्यय ज्ञान में, केवल ज्ञान में जीवादिक तीन भंग होते हैं। (ओहिय अण्णाणे मइ अन्नाणे, सुय अन्नाणे, एगिदियवज्जो तियभंगो) औधिक अज्ञान में, मति अज्ञान श्रुन अज्ञान में एकेन्द्रिय वर्ज तीन भंग होते हैं। (विभंग अण्णाणे जीवाइओ तियभंगो) विभंग ज्ञान में जीवादिक तीन भंग होते हैं । (सजोगी जहा ओहिओ) औधिक की तरह सयोगी होते हैं। (मण-जोगि-वयजोगि-कायजोगिहिं जीवाइओ तियभंगो) मनोयोगी में, वचनयोगी में और काययोगो में जीवादिक तीन भंग (नेरइएसु छब्भंगा ) सने नारीमा छ । थाय छे. ( अकसाई जीवमणुपहि, सिद्धेहिं तियभंगो) ४ाय २डित वामां, मनुष्योमा भने सिद्धोमां १ . थाय छे. ( ओहियणाणे आभिणिबोहियणाणे सुयणाणे जीवाइओ तियभगो) मीधित ज्ञानभां-मिनिमाथि शानभा भने श्रुतज्ञानभा One ३ म थाय छे, (विगलि दिएहि छब्भंगा) Aaन्द्रियामा छ म1 थाय छ. (ओहिणाणे मणपज्जवणाणे, केवलणाणे जीवाइओ तियभंगो) मीधि शानभां, भना५यय ज्ञानमा भने १५ ज्ञानमा हिम थाय छे. (ओहिय अण्णाणे मइअण्णाणे सुयअण्णाणे, एगिदियवज्जो तियभंगो ) मोघि४ असा. નમાં, મતિ અજ્ઞાનમાં અને કૃત અજ્ઞાનમાં એકેન્દ્રિય વર્જિત ત્રણ ભંગ થાય छे. (विभगअण्णाणे जीवाई ओ तियभंगो) विज्ञानमा त्रिय 1 थाय छे. ( सजोगी जहा ओहिओ) सोधिनी म सयोजाना विषयमा सभा . ( मणजोगि, वयजोगि, कायजोगिहि जीव इओ तियभंगो) मनाया, भ १२० શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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