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________________ प्रमेrचन्द्रिका टीका श० ५४० १ सू० ४ लवणसमुद्र वक्तव्यतानिरूपणम् ८१ धातकीखण्डस्यापि भणितव्या, नवरम् - अनेन अभिलापेन सर्वे आलापकाः भणितव्याः, यदा खलु भदन्त ! धातकीखण्डे द्वीपे दक्षिणार्धे दिवसो भवति, वदा खलु उत्तरार्धेऽपि ? यदा खलु उत्तरार्धेऽपि तदा खलु धातकीखण्डे द्वीपे मन्दराणां पर्वतानां पौरस्त्य - पश्चिमेन रात्रिर्भवति ? हन्त गौतम! एवं चैव यावत्रात्रिर्भवति यदा खलु भदन्त ! घातकीखण्डे द्वीपे मन्दराणां पर्वतानां पौरस्त्ये atrista faभाणियव्वा ) हे गौतम! जम्बूद्वीप में जैसी वक्तव्यता सूर्यो के विषय में कही गई ठीक वैसी वह पूर्ण वक्तव्यता यहां पर धाnaraण्ड भी कह लेनी चाहिये । ( नवरं ) परन्तु जो अन्तर है वह इतना ही है कि (इमेणं अभिलावेणं सव्वे आलावगा भाणियव्वा) पाठ का उच्चारण करते समय समस्त आलापक इसी प्रकार से कहना चाहिये (जया णं भंते ! धायइसंडे दीवे दाहिणड्डे दिवसे भवह, तया णं उत्तर वि) हे भदन्त ! जब धातकीखंड नामके द्वीप में दक्षिणार्ध में दिवस होता है, तब उत्तरार्ध में भी दिवस होता है। (जया णं उत्तर वि तया णं धायइसंडे दीवे, मंदराणं पव्वयाणं पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं राई भवइ ) तो जब उत्तरार्ध में भी दिवस होता है तब धातकीखंड द्वीप में मंदर पर्वतों के पूर्वपश्चिम भाग में रात्रि होती है क्या ? (हंता गोयमा ! एवं चेव जाव राई भवइ ) हां, गौतम ! ऐसा ही होता है, यावत वहां रात्रि होती है । ( जया गं भंते ! धायइसंडे दीवे मंदराणं २३ लय छे ? ( जहेव जंबुद्दीवर वक्तव्वया - भणिया - सच्चेव धाइयस उस्त विभाणियव्वा ) हे गौतम! सूर्यना विषयभां नेषु वर्शन द्वीपनी गये. ક્ષાએ કરાયુ છે, એવુ... જ સપૂર્ણ વર્ણન અહી ઘાતકીખડની અપેક્ષાએ वु ले. (नवर ) पशु ते वर्षान उरतां या वर्षानां नीचे प्रमाणे तर छे - (इमेण अभिलावेणं सव्वे आलावगा भाणियव्वा ) घातडीख' विषयर सूत्रपाठ मोती वृष्यते समस्त आसा या प्रमाणे उडेवो लेहो- ( जयाण भ ! घायल दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तयाण' उत्तरड्ढे वि ) डे लहन्त ! જ્યારે ધાતકીખંડ નામના દ્વીપના દક્ષિણામાં દિવસ થાય છે, ત્યારે તેનાઉત્તરાधभा पशु द्विवस थाय छे. (जयाण' उत्तरड्ढे वि तयाण धायइस डे दीवे, मंदराण व्याणं पुरस्थमे णं राई भवइ ?) अनेक्यारे तेना उत्तराधमां पाशु द्विवस थाय છે, ત્યારે શુ ધાતકીખંડ દ્વીપના મંદર પર્વતના પૂર્વ અને પશ્ચિમ ભાગમાં रात्रि थाय छे ? (हता, गोत्रमा ! एवं चेव जाव राई भनइ) डा, गौतम ! मेथुं જ બને છે, ( પૂર્વ પશ્ચિમ ભાગમાં રાત્રિ થાય છે,) ત્યાં સુધીનું પ્રશ્નસૂત્રનું સમસ્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ. भ ११ श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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