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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ४० ३ सू० ५ कम स्थितिनिरूपणम् ९२९ अथ सूक्ष्मविषयकबंधद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-‘णाणावरणिज्जणं भंते कम्म कि मुहुमे, बंधइ बायरे वंधइ ?' हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कर्म किं सूक्ष्मः बध्नाति बादरो वा बध्नाति ? ' णोसुहुम-णोबायरे बंधइ ? ' नोमूक्ष्म-नोवादरो वा किं बध्नाति ? भगवानाह-' गोयमा ! सुहुमे बंधइ ' हे गौतम ! सूक्ष्मो बध्नाति, 'बायरे भयणाए ' बादरो भजनया कदाचिद् बध्नाति, कदाचिन्न बघ्नानि, वीतरागबादराणां ज्ञानावरणावन्धकत्वात् , सरागवादराणां च तद्वन्धहारक जीव-समुद्धातगत केवली और विग्रहगति वाले जीव-आयुकर्म का बंध नहीं करते हैं। क्यों कि इस अवस्था में वे आयु कर्म के अषन्धक माने गये हैं।
अब सूक्ष्मविषयकबंधद्वारका आश्रित करके गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते हैं कि-(णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्म किं सुहुमे बंधह, बायरे बंधह?) हे भदन्त ! सूक्ष्मद्वार की अपेक्षा विचार करनेपर कौनसा जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? क्या जो सूक्ष्मनामकर्म के उदयवाला जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? या जो बादर नाम कर्म के उदयवाला जीव है, वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता हैं ? (णो सुहुम णो बायरे बंधइ ) जो जीव न सूक्ष्म है और न बादर है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं ( गोयमा) हे गौतम ! (सुहमे बंधह) सूक्ष्म जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है (पायरे भयणाए ) चादर जीव भजना से हारए णो बंधइ ) मन.२४ ७१ मेटले 3 समुद्धात ही मने विड ગતિવાળા જી અયુકમનો બંધ કરતા નથી, કારણ કે આ અવસ્થામાં તેમને આયુકર્મના અબધેક માનવામાં આવેલા છે.
હવે ગૌતમ સ્વામી સૂફમદ્વારને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન पूछे छे है (णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं किं सुहमे बधइ १) महन्त ! સૂક્ષમદ્વારની અપેક્ષાએ વિચાર કરતા કો જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે? शु सूक्ष्मनाममना यवागे। ७१ साना१२४ीय म मधे छ १ . “ बायरे बंधइ १) मा४२ (स्थू) नाममा यो ७१ साना२णीय मांधे छ ? अथवा ( णो सुहुम णो बायरे बंधइ ) ७१ न सूक्ष्म अन्न माहर હોય છે, તેઓ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે?
उत्तर-(गोयमा ! ) 3 गौतम ! (सुहुमे बधइ ) सूक्ष्म १ साना१२वीय भनviध ४२ छ, (बायरे भयणाए ) मा४२ () २ ते ४माना
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪