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प्रमेन्द्रका टी० श० ६ ० ३ सू० ४ कर्म स्थितिनिरूपणम्
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गोभवसिद्धिय - णोभभवसिद्धिए न बंध' नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिकः सिद्धो जीवो न बध्नाति, एवं आउगवज्जाओ सत्त वि ' एवं ज्ञानावरणवदेव आयुष्कवः सप्तापि कर्मप्रकृतयो विज्ञेयाः तथा च आयुष्यवर्जितानि दर्शनावरणादिकर्माण्यपि भवसिद्धिकः कदाचिद् बध्नाति, कदाचिन्न बध्नाति, अभवसिद्धिस्तु बध्नात्येव, नोभवसिद्धिकः - नोअभवसिद्धिकः सिद्धस्तु न बध्नात्येवेति भावः । ' आउगं हिल्ला दो भयणाए ' आयुष्कं कर्म अधस्तनौ आद्यौ द्वौ भव्योऽभव्यश्च भवसिद्धिकपदवाच्यः, अभवसिद्धिकपदवाच्यश्चेत्यर्थः भजनया
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द्विक भव्य हैं और अभवसिद्धिक- अभव्य हैं- इन दोनों प्रकार के पारिणामिक भावों से रहित हैं ऐसे वे सिद्ध परमात्मारूप जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करते हैं यही बात ( णो भवसिद्धिए णो अभ वसिद्धिए न बंध ) इस सूत्र द्वारा प्रदर्शित की गई है। ( एवं आउगबजाओ सत्त वि) ज्ञानावरणीय कर्म की तरह ही आयुष्कवर्ज सात कर्मप्रकृतियों को जानना चाहिये अर्थात् जो भवसिद्धिक जीव होता है वह आयुष्कवर्ज दर्शनावरणीयादि कर्मों का बंध करता भी है और नहीं भी करता है । तथा जो अभवसिद्धिक जीव होता है वह तो नियम से आयुष्कवर्ज दर्शनावरणीयादि कर्मों का बंध करता है । परन्तु जो ऐसे जीव होते हैं कि न वे भवसिद्धिक है और न अभवसिद्धिक है तो वे आयुष्कवर्ज दर्शनावरणीयादि कर्मी कृतियों का बंध नहीं करते हैं। कारण ऐसे जीवों में इन कर्मों को बंध करने के कारणों का सर्वथा अभाव हो जाता है। (आगं हिला दो भयणाए ) भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक
अभवसिद्धिए न बधइ) ने लवसिद्धि ( लव्य न होय भेवे। અને ન અભવસિદ્ધિક ( અભવ્ય ન હોય એવા જીવ) જીવ-આ બન્ને પ્રકા રના પારિણામિક ભાવેાથી રહિત એવા સિદ્ધ પરમાત્મા રૂપ જીવ જ્ઞાનાવરણીય उन धरतो नथी, "एवं आउगवज्जाओ सत्त वि " આ જીવેાના આયુષ્યકમ સિવાયના સાતે કર્મીના અધનું કથન જ્ઞાનાવરણીય કર્મોના કથન પ્રમાણે જ સમજવું એટલે કે ભસિદ્ધિક જીવ આયુકમ સિવાયના સાતે કર્માના ખધ વિકલ્પે કરે છે, અભવસિદ્ધિક જીવ તે સાતે કર્મના અંધ અવશ્ય કરે છે, અને ને। ભવસિદ્ધિક અને ના અભવસિદ્ધિક જીવા આયુકમ સિવા યુના સાતે કર્મોના બંધ કરતા નથી, કારણ કે તે જીવોમાં એ કના અધ કરવાનાં કારણેાતા અભાવ હાય છે.
( आउगं हे दिला दो भयणाए ) लवसिद्धि भने भभवसिद्धि ल्वा
श्री भगवती सूत्र : ४