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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ६ ० ३ ९० कर्मस्थितिनिरूपणम् ९०७ 'आउगं हेछिल्ला दो भयणाए' आयुष्कं कर्म तु अधस्तनौ आद्यौ द्वौ संज्ञी, असंज्ञी च भजनया-कदाचिद् बध्नीतः, कदाचिन्न बध्नीतः, अन्तर्मुहूर्तमेव तद्वन्धनात् , किन्तु ' उवरिल्ले न बंधइ' उपरितनः अन्तिमः नोसंज्ञि-नोअसंज्ञी केवली सिद्धश्च आयुष्यं न बध्नाति । अथ भवसिद्धि विषयकं बन्धद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति'णाणावरणिज्ज कम्म किं भवसिद्धिए बंधइ ' हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कर्म किं भवसिद्धिको बध्नाति ? ' अभवसिद्धिए बंध' अभयसिद्धिको वा बध्नाति ? ‘णोभवसिद्धिय-णोप्रभवसिद्धिए बंबइ ? ' नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिको वा है तो वह इस शातावेदनीयरूप कर्म का बंध नहीं करता है। इसी कारण यहां पर (भजनया) ऐसा पद कहा गया है (आउगं हेडिल्ला दो भयणाए) तथा जो जीव संज्ञी और असंज्ञी हैं वे आयुकर्म को कदाचित् बांधते हैं और कदाचित् नहीं बांधते हैं क्यों कि आयुकर्म का बंध एक अन्तर्मुहूर्त्तकाल में ही होता है । (उवरिल्ले न बंधइ) और जो नो संज्ञी नो असंज्ञीरूप केवली भगवान् और सिद्धपरमात्मा हैं वे आयुकर्म का बंध करते ही नहीं हैं। अब सूत्रकार भवसिद्धिविषयबन्ध द्रारको लेकर कथन करते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि-(णाणावरणिज्ज कम्मं किं भवसि. द्धिए बंधह) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म को कौनसा जीव इस बार की अपेक्षा से विचार करने पर बांधता है ? क्या भवसिद्धिक जो जीव होता है वह बांधता है ? या जो (अभवसिद्धिए बधा) अभयसिद्धिक जीव होता है वह बांधता है ? (णोभवसिद्धिए जोअभवसिद्धिए पंधइ) શાતવેદનીય કમને બંધ કરતા નથી. તેથી જ અહીં એવું કહ્યું છે કે “ને सशी भने नो असशी” (१४८ वहनीय भनी म ४रे छे. ( आउगं हेडिल्ला दो भयणाए) शी अने मसजी ! मायुभ न ध मांधे छ પણ ખરાં, અને નથી પણ બાંધતા, કારણ કે આયુકર્મને બંધ એક અન્તभुडूत wi on थाय छे. “ उबरिल्ले न बधइ" नो सही अने नो असशी રૂપ કેવલી ભગવાન અને સિદ્ધ પરમાત્મા આયુકર્મને બંધ કરતા નથી. હવે સૂત્રકાર ભવસિદ્ધિક બંધ દ્વારને અનુલક્ષીને નીચેની પ્રક્ષણ કરે છે–ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે – (णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं कि भवसिद्धिए बंधइ ?) 3 महन्त ! જ્ઞાનાવરણીય કર્મ કર્યો જીવ બાંધે છે? ભવસિદ્ધિક જીવ શું જ્ઞાનાવરણીય म सांधे छ ? अथ। “अभवसिद्धिए बधा१" शुभमसिद्धि ७१ 240 म मधे छ १ १५ ( णो मासिद्धिए, णो अभषखिदिए बधा) श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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