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________________ प्रमेन्द्रकाटी ० श० ६ उ० ३ सू० ४ कर्मस्थिति निरूपणम् ८९९ संयत-नोअसंयत बध्नाति ? अथवा ' णोसंजय -- णोअसंजय - णोसंजया संजए बंधइ ? ' नो नोसंयतासंयतो बध्नाति ? भगवानाह - - ' गोयमा ! संजय सिय बंध, सिय णो बंध, हे गौतम! संयतः आद्यसंयमचतुष्टयवृत्तिर्ज्ञानावरणं स्यात् कदाचिद् बध्नाति यथाख्यातसंयतस्तु उपशान्त मोहादिः स्यात् कदाचित् नो बध्नाति, 'असंजए बंधइ ' असंयतो मिथ्यादृष्ट्यादिः ज्ञानावरणं कर्म बध्नाति ' संजयासंगए वि बंध संयतासंयतोऽपि देशविर , " -- कर्मका बंधकरता है ? ( णो संजय - णोअसंजय गोसंजपासंजए बंधइ) जो जीवन संयत है, न असंत है और न संयतासंयत है वह ज्ञानावरणीय कर्मका वध करता है क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते हैं कि ( गोयमा) हे गौतम! (संजए सिय बंधइ, सिय णो बंधइ) संयत जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता भी है और नही भी करता है - इसका भाव यह है कि जो जीव सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्ध और सूक्ष्मसपराय इन आदि के चार संयम में रहनेवाला है वह तो ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है और जो यथाख्यात संयमवाला जीव है वह उपशान्त मोह आदि गुणस्थानों में रहनेवाला होनेके कारण ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करता है । इसी बात को लक्ष्य में लेकर ( संजए सिय बंध, सिय णो बंधइ ) ऐसा कहा गया है। (असंजए बंध ) असंयमी जो मिध्यादृष्टि आदि जीव है-वह ज्ञानावरणीय कर्म अथवा - ( णोसंजय - णोअसंजय णोसंजयासंजए बंधइ १ ) ने भवनो સયત છે, ના અસયત છે અને ના સયતાસયત છે, તે શું જ્ઞાનાવરણીય ક્રના અધ કરે છે ? उत्तर—“ गोयना ! " हे गौतम! ( संजए सिय बंधइ, सिय णो बधइ ) સયત જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના બંધ કયારેક કરે છે અને કયારેક નથી કરતા. આ કથનનું તાત્પર્યં નીચે પ્રમાણે છે—જે જીવ સામાયિક, છેદેપસ્થાપ નીય, પરિહાર વિશુદ્ધિ અને સૂક્ષ્મ સાંપરાય આદિ ચાર સયમમાં રહેનાર હાય છે, તે જ્ઞાનાવરણીય કર્માંના બંધ કરે છે, પણ જે યથાખ્યાત સયમવાળા જીવ હોય છે તે ઉપશાન્ત મેહ આદિ ગુણસ્થાનામાં રહેનારા હાવાથી જ્ઞાનાવરણીય કર્માંના ખધ કરતા નથી. એજ વાતને અનુલક્ષીને " संजए सिय बंध, सिय णो बधइ " मेनुं वामां मन्युं छे. न " अजंस बंध અસયમી મિથ્યાદૃષ્ટિ આદિ જીવ જ્ઞાનાવરણીય धरे छे, ( संजयास जए वि बंधइ ) तथा संयतासंयत व श्री भगवती सूत्र : ४ ܪܕ
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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