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________________ ८९४ भगवती सूत्रे पुरुषो बध्नाति ? ' नपुंसओ बंधइ ? ' नपुंसको बध्नाति ? गोइत्थी - गोपुरिस - गोन सभी बंध ?' नोस्त्री - नोपुरुष - नोनपुंसको बध्नाति ? यो जीवः न स्त्री, न पुरुषः, नापि नपुंसको वर्तते सोऽपि किं ज्ञानावरणीयं कर्म वध्नाति १ इत्याशयः, भगवानाह – गोयमा ! इत्थो वि बंध, पुरिसो त्रिबंध, नपुंसओ वि बंध' हे गौतम! स्त्री अपि ज्ञानावरणीयं कर्म बध्नाति पुरुषोऽपि तत्कर्मबध्नाति, नपुंसकोऽपि जीवः तत्कर्म बघ्नाति, किन्तु 'नोइत्थी-गोपुरिस - गोनपुंसओ सिय बंधड़, सिय णो बंधइ' नोत्री - नोपुरुष - नोनपुंसको जीवः 17 बंधइ ) हे भदन्त ! आत्मा के ज्ञानगुण को आवरणकरने के स्वभाववाले ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कौन करता है ? क्या इस कर्म का बंध स्त्री करती है ? या ( पुरिसो बंधइ) पुरुष करता है ? या (नपुंसभी बंधइ ) नपुंसक करता है ? अथवा ऐसा जीव करता है कि जो ( णाइत्थी ) न स्त्री है ? (पुरिस नपुंसओ) न पुरुष है ? न नपुंसक है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम । ( इत्थि वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ) ज्ञानावरणीय कर्म के बंध करने में ऐसी कोई रुकावट नहीं है कि स्त्री ही इस कर्मका बंध करेपुरुष न करे अथवा पुरुष ही करे-नपुंमक न करे- तीनों ही वेदवाले इस कर्म का बंध करते हैं- "स्त्री भी इस कर्म का बंध करती है, पुरुष भी इस कर्म का बंध करता है और नपुंसक भी इस कर्म का बंध करता है । पर हां, यह बात अवश्य है कि जो जीव ( गोइत्थी, गोपुरिस, णो णं भंते ! कम्म किं इत्यो बंधइ ? " डे लक्ष्त ! आत्माना ज्ञानगुशुनुं भावરણુ કરવાના સ્વભાવવાળા જ્ઞાનાવરણીય કર્માંના બંધ કાણુ કરે છે ? શું આ अर्मना मध स्त्री पुरे छे ? अथवा “ पुरिसो बंधइ " पुरुष रे छे ? अथवा " नपुंसओ बंधइ ? ” नपुंस रे छे અથવા જ્ઞાનાવરણીય ક`ના મધ शुभे। वरे छे " जो इस्थी " स्त्री नथी ? " णो पुरिसे " पुरुष નથી ? " णो नपुंसओ " मने नपुंस नथी १ ગૌતમ સ્વામીના આ પ્રશ્નને જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે— (गोयमा !) डे गौतम ! (इत्थी वि बंधइ, पुरिसो विबंध, नपुंसओ वि बबइ ) જ્ઞાનાવરણીય કમ ને ખંધ સ્ત્રી પણ કરે અથવા પુરુષ પણ કરે અને નપુંસક પણ કરે છે. ત્રણે ભેદવાળા છો આકના બંધ કરે છે-“જ્ઞાનાવરણીય કર્માંના બંધ પણ કરે છે, પુરુષ પણ કરે છે અને નપુ ́સક પણ કરે છે.” પરન્તુ એવું અવશ્ય भने छे है ? लव (गोइत्थी, गोपुरिव, णोनपुंसओ खिय बधइ, सिय णा बंधइ) श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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