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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०६ उ०३ सू०५ कर्मबन्धनिरूपणम
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णोसुहुमणोवायरे न बंधइ । णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं चरिमे बंधइ, अचरिमे बंधइ ? गोयमा ! अठ्ठ वि भयणाए ॥ सू० ५ ॥
छाया - ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं स्त्री बध्नाति, पुरुषो बध्नाति, नपुंसको बध्नाति ? नोस्त्रीनो पुरुषनोनपुंसको बध्नाति ? गौतम ! स्त्री अपिबध्नाति, पुरुषोऽपि बध्नाति नपुंसकोऽपि बध्नाति, नोस्त्रीनो पुरुष नोनपुंसकः स्याद् बध्नाति, स्याद् नो बध्नाति एवम् आयुष्कवर्जाः सप्त कर्मप्रकृतयः । आयुष्कं खलु कर्मबन्धक वक्तव्यता
' णाणावर णिज्जं णं भंते !' इत्यादि ।
सूत्रार्थ - ( णाणावर णिज्जं णं भंते! कम्मं किं इत्थी बंधड़, पुरिसेो बंध, नपुंसओ बंधइ ? ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती है ? या पुरुष बांधता है ? या नपुंसक बाँधता है ? कौन बांधता है ? अथवा - (गोइत्थी पुरिस णानपुंसओ बंध) स्त्री नहीं बांधती है ? पुरुष नहीं बांधता है ? नपुंसक नहीं बांधता हैं ? तो कौन बांधता है ? (गोयमा ! हस्थी वि बंधइ, पुरिसेो वि बंध, नपुंसओ वि बंध ) हे गौतम! स्त्री भी ज्ञानावरणीय कर्म बांधती है। पुरुष भी ज्ञानावरणी कर्म बांधता है। नपुंसक भी ज्ञानावरणीय कर्म बांधता है । ( णो हत्थो णो पुरिस-णो नपुंसओ सिय बंध, सिय णो बंधइ ) तथा जो जीव नोस्त्री होता है - स्त्री नहीं होता है, नोपुरुष होता है- पुरुष नहीं
उर्भमन्ध वक्तव्यता
" णाणावर णिज्जं णं भंते ! " इत्याहि
सूत्रार्थ - ( णाणावर णिज्जं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंध ? ) अहन्त ! ज्ञानावरणीय अर्भ शुं स्त्री मधे छे ? पुरुष जांघे छे ? न जांघे छे ? अथवा - ( गोइत्थी, णोपुरिस, णोनपुंसओ बंध ? ) ज्ञानावरणीय अर्भ शुं स्त्री मांधती नथी ? पु३ष गांधतो नथी ?
पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ
नपुंस मधतो नथी ? ( गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, विबंध ) डे गौतम ! स्त्री पशु ज्ञानावरणीय જ્ઞાનાવરણીય કર્મ આંધે છે. અને નપુંસક પશુ ( णोइत्थी, णोपुरिस, गोनपुंसओ सिय बंबइ, सिय णो बंध ) तथा 'नोखी ' होय छे- स्त्री होती नथी, 'नो पुरुष ' होय छे-५३ष होतो
५३ष पशु ખાંધે છે.
श्री भगवती सूत्र : ४
अर्भ मधे छे, જ્ઞાનાવરણીય ક