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________________ मगवतीसूत्र कर्मोपचयः सादिकः०, नो चैव खलु जीवानां कर्मोपचयः सादिकः अपर्यवसितः । वस्त्रं खलु भदन्त ! किं सादिकम्-सपर्यवसितम् , चतुर्भङ्गम् । गौतम ! वस्त्रं सादिकं सपर्यवसितम् , अवशेषास्त्रयोऽपि प्रतिषेधयितव्याः यथा खलु भदन्त ! वस्त्रं सादिकं सपर्यवसितम् , नो सादिकम् अपर्यवसितम् , नो अनादिकं सपर्यवसितम् , नो अनादिकम् अपर्यवसितं तथा जीवाः किं सादिकाः सपर्यवसिताः, चतुर्भङ्गम् पृच्छा ? गौतम ! अस्त्येक के सादिकाः सपर्यवसिताः, चत्वारोऽपि भणितव्याः। जीव नहीं है कि जिसका कर्मोपचय सादि और अनन्त हो (वत्थे णं भंते ! किं साइए सपज्जवसिए, चउभंगो) हे भदन्त ! वस्त्र क्या सादिसान्त है ? कि सादि अनन्त है ? या अनादि सान्त है ? कि अनादि अनन्त है ? इस प्रकार ये यहां चार भंग होते हैं क्या ? (गोयमा ! वत्थे साइए सपजवसिए, अवसेसा तिनि वि पडिसेहे यव्वा ) हे गौतम ! वस्त्र सादि सान्त है बाकी के तीन भंग वस्त्र में प्रतिषेध्य हैं। (जहा णं भंते! वत्थे साइए सपजवसिए, णो साइए अपज्जवसिए, णो अणाइए सपजवसिए, णो अणाइए अपज्जवसिएतहाणं जीवाणं किं साइया सपज्जवसिया ? चउभंगो पुच्छा ) हे भदन्त ! वस्त्र जिस तरह से सादि सान्त है, वह सादि अनन्त नहीं है, अनादि सान्त नहीं है, और अनादि अनन्त भी नहीं है, उसी प्रकार से क्या जीव भी सादि सान्त हैं ? वे सादि अनन्त नहीं हैं क्या? अनादि सान्त नहीं हैं ? क्या ? अनादि अनन्त नहीं हैं क्या ? (गोयमा!) हे (वत्थे ण भते किं साइए सपज्जवसिए चउभगो) 3 महन्त ! १७ साह (माहिथी युत) सान्त (मन्तथी युत) छ, साहि मन त छ ? અથવા અનાદિ સાન્ત છે, કે અનાદિ અનંત છે? શું વસ્ત્રને આ ચારે ભંગ (वि४६) साशु ५ छ ? (गोयमा ! वत्थे साइए सपज्जवसिए, अवसेस। तिन्नि वि पडिसेहेयव्वा) તમ! વસ્ત્ર આદિ સાન્ત છે, બાકીના ત્રણે ભંગને અસ્વીકાર થયો સમજ એટલે કે વસ્ત્ર સાદિ અનંત નથી, અનાદિ સાન્ત નથી અને અનાદિ અનંત નથી. (जहाण भंते ! वत्थे साइए सपज्जवसिए, णो साइए अपज्जवसिए, णो अणाहुए सपज्जवसिए, णो अणाइए अपज्जवसिए-तहाणं जीवाणं किं साइया सपजयसिया १ च उभंगो पुच्छा) 3 महन्त ! म पर साल सान्त छ. त સાદિ અનંત નથી, તે અનાદિ સાન્ત નથી અને અનાદિ અનંત પણ નથી. કરા પ્રમાણે શું છે પણ સાદિ સાન્ત છે? શું છે સાદિ અનંત. અનાદિ સાન્ત અને અનાદિ અનંત નથી ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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