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________________ ૩૨ भगवतीसूत्रे " ', वसितः, नो अनादिकः सपर्यवसितः, नो अनादिकः अपर्यवसितः । यथा खलु भदन्त ! वस्त्रस्य पुद्गलोपचयः, सादिकः सपर्यवसितः १ नो सादिकोऽपर्यवसितः २, नो अनादिकः सपर्यवसितः ३, नो अनादिकः अपर्यवसितः४, तथा खलु जीवानां कर्मोपचयः पृच्छा ? गौतम ! अस्त्येकेषां जीवानां कमपिचयः सादिकः सपर्यवसितः, अस्त्येकेपाम् अनादिकः सपर्यवसिकः अस्त्येकेषाम् अनादिकः णो साइए अपज्जवसिए, नो अणाइए सपजवसिए, णो अणाइए अपज्जबसिए) हे गौतम! वस्त्र के जो पुद्गलोपचय होता है वह सादि सान्त है, सादि अनन्त नहीं है, न अनादि सान्त है और न वह अनादिअनन्त है । (जहा णं भंते ! वत्थस्स पोगलोबचए साहए सपज्जवसिए पो साइए अपज्जबसिए, नो अणाइए सपज्जबसिए, णो अणाइए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा ) हे भदन्त ! जिस प्रकार वस्त्र का पुद्गलापचय सादि सान्त है । सादि अनन्त नहीं, अनादि सान्त नहीं है और अनादि अनन्त भी नहीं है, उसी प्रकार क्या जीवों का कर्मोपचय भी सादि सान्त है सादि अनन्त नहीं है ? अनादि सोन्त नहीं है ? और अनादि अनन्त भी नहीं है ? ( गोयमा) हे गौतम! ( अत्थेगइयाणं जीवाणं कम्मोचचए साइए सपज्जबसिए) कितनेक जीव ऐसे हैं कि जिनका कर्मोपचय सादि सान्त है ( अत्थेगइयाणं अणाइए सपज्जवसिए) कितनेक जीव ऐसे हैं कि जिनका कर्मोपचय अनादि सान्त है ( अत्थेगइयाणं आणाइए अपज्जबसिए) तथा कितनेक जीव ऐसे हैं साइए अपज्जवसिए, णो अणाइए सपज्जवसिए, णा अणाइए अपज्जवसिए) वस्त्रना પુદ્ગલાના જે ઉપચય થાય છે તે સાદિ સાન્ત હાય છે, સાઢિ અનંત હોતા નથી मनाहि सान्त होतो नथी मने मनाहि अनंत पशु होतो नथी. (जहाणं भंते ! वत्थस्स पोग्गलोवचये साइए सपज्जवसिए, णो साइए अपज्जवसिए, जो अणाइए अपज्जवसिए, तहाणं जीवाण' कम्मोवचए पुच्छा ) हे लहन्त ! नेवी रीते वनां પુદ્ગલેના ઉપચય સાદિ સાન્ત હોય છે, સાઢિ અનત હાતા નથી, અનાદિ સાન્ત હોતા નથી અને અનાદિ અનંત હાતા નથી, એજ પ્રમાણે શું જીવાનાં પુદ્ગલેના ઉપચય પણ સાદિ સાન્ત હાય છે ? શું તે સાદિ અનન્ત, અનાદિ सान्त भने अनादि अनंत होतो नथी ? ( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( अत्थेग इयाणं जीवाण' कम्मोचचए साइए सपज्जवसिए) हे गौतम! डेंटला लवा मेषां हाय छे तेभने। उभेपियय साहि सान्त होय छे, ( अत्थेगइयाण अाइए सपज्जवसिए) टाकवनो भेपियय अनाहि सान्त होय छे, ( अत्थेगइयाणं अणाइए अपज्जवसिए) लालवानी भोपाय मनाहि श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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