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प्रमेयचन्द्रिका रीका श० ६ उ० ३ सू० १ महाकाल्पकर्मनिरूपणम् ८२१ दुष्फासत्ताए ' दुर्गन्धतया-दुर्गन्धत्वेन, दूरसतया कटुकवादिरसत्वेन दुस्पर्शतया. कर्कशकठोरादिस्पर्शतया 'अणिद्वत्ताए ' अनिष्टतया कस्याषि इच्छाया अविषयत्वेन ' असंत-अप्पिय-असुभ-अमणुन्न-अमणामत्ताए, अणिच्छियत्ताए' अकान्त तया अरमणीयतया, अप्रियतया प्रेमराहित्येन अमनोज्ञत्वेन, असुन्दरतया, अशुभत्वेन-अमङ्गलतया, अमनोऽमतया मनसा प्राप्तुमवाञ्छिततया, अनिच्छिततयाप्राप्तुमनभिवान्छितत्वेन 'अभिज्झियत्ताए अहत्ताए-णो उड्ढत्ताए' अभिध्यिततया (दूरसत्ताए ) कुत्सितरसवाला (दुप्फासत्ताए) कुत्सितस्पर्शवाला,-ककैश कठोर आदिस्पर्शवाला होता है क्या ? ( अणित्ताए ) किसी की भी इच्छा का विषय भूत वह नहीं बनता है क्या ? अर्थात् ऐसे शरीर धारी को कोई भी नहीं चाहता है क्या (अकंत-अप्पिय-असुभ-अमगुन्न-अमणामत्ताए अणिच्छियत्ताए ) वह सुन्दर नहीं होता है क्या ? कोई भी उससे प्यार नहीं करता है क्या ? किसी के भी मन को वह नहीं गमता है क्या ? कोई भी जीव क्या ऐसे व्यक्ति की मन से भी कभी याद नहीं करता है क्या ? अभिज्झियत्ताए अदत्ताए " नो उडत्ताए" दुक्खत्ताए "नो सुहत्ताए भुज्जो २ परिणमइ " ऐसी स्थिति को प्राप्त करने का किसी को लोभ भी नहीं होता है क्या? वह सर्व प्रकार से क्या बिलकुल जघन्यरूप (नीचे परिस्थिति) में ही रहता है ? कभी भी क्या वह उत्कृष्ट नहीं माना जा सकता है ? सदा उसमें दुःखों का ही वास रहता है क्या ? कभी भी क्या उसमें सुखरूपता का भासतक भी नहीं होता है ? इस रूप से ही वह क्या प्रत्येक क्षण २ में परिणामित होता रहता है ? तात्पर्य पूछने का केवल यही है कि ४२६५ २५ug ( , १२ मा २५शवाणु) थाय छे मई १ ( अणि. टुत्ताए ) शु सेवा ने ई ५ या नथी ? ( अकन्त, अप्पिय, असुभ, अमणुन्न, अमणामत्ताए अणिच्छियत्ताए) शुते सुंदर डात नथी १ शु. ४५१५ તેના પર પ્રેમ રાખતું નથી ? શું કેઈના મનને તે ગમતું નથી ? શું કઈ ५५ व्यहित मे ने भनथी ५५५ ४ही या४ ४२ती नथी ? ( अभिज्झियत्ताए अहत्ताए, नो उढत्ताए, दुक्खत्ताए नो सुहत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमह) वी સ્થિતિને પ્રાપ્ત કરવાને શું કેઈને પણ લોભ થતું નથી ? શું તે સર્વ પ્રકારે અધમ દશામાં જ રહે છે? શું કદી પણ તેની ઉન્નતિ થતી નથી ? શું સદા તેને દુખે જ સહન કરવા પડે છે? શું તેને કદી પણ સુખને ભાસમાત્ર પણ થતું નથી? આ પ્રકારે જ શું તે સદા પરિણમિત થતા રહે છે?
श्री. भगवती सूत्र:४