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भगवतीसत्र तद् अथ, नूनं निश्चयेन किम् महाकर्मणः स्थित्याधपेक्षया बहुकर्मक्तः महाक्रियस्य कायिक्यादिमहाक्रियायुक्तस्य, महास्रवस्य - कर्मबन्धहेतुभूतमहामिथ्यात्वमहारम्भमहापरिग्रहादिमतः, महावेदनस्य - महादाहज्वरादिजनितपीडायुक्तस्य जीवस्य, सर्वतः सर्वासु दिक्षु, सर्वान वा जीवनदेशान् अश्रित्य पुद्गलाः कर्मपरमाणवः बध्यन्ते ? ' सबओ पोग्गला चिज्जति ' सर्वतः पुद्गलाः चीयन्ते ? बन्धनरूपेण संगृह्यन्ते किम् ? ' सवओ पोग्गला उवचिज्जंति ' सर्वतः रहे हैं-इसमें गौतम प्रभु से पूछ रहे हैं कि (से गूणं भंते ! ) हे भदन्त! क्या यह निश्चित बात है कि (महाकम्मस्स) जिस जीव के कर्म की स्थिति वगैरह बहुत अधिक बड़ी ऐसे महाकर्मवाले जीव के अर्थात् अधिक स्थितिवाले, अधिक अनुभागवाले और अधिक प्रदेशवाले कर्मों से सहित जीव के (महाकिरियस महासवस्स ) जिसकी कायिकी आदि क्रियाएँ बहुत बढी चढी हुई हैं इसी कारण जो कर्मबंध के हेतुभूत महामिथ्यात्व, महारम्भ महापरिग्रह में फँसा हुआ है (महावेयणस्स) महादाहज्वर आदि जनित व्यथा से जो बहुत बुरी तरह तडफड रहा है ऐसे जीव के (सव्वओ पोग्गला बज्झति ) समस्त दिशाओं में से अथवा जीव के सर्व प्रदेशों को आश्रित करके पुद्गल-कर्म परमाणुओं का संकलनरूप बंध होता है ? (सव्वओ पोग्गला चिजति ) समस्त दिशाओं में से अथवा जीव के सर्व प्रदेशों का आश्रित करके कर्म वर्गणारूप पुद्गल ऐसे जीव द्वारा बंधनरूप से ग्रहण किये जाते हैं क्या? (सव्यओ पोग्गला उवचिज्जंति) सर्वतः निषेक रचना की अपेक्षा से वे प्रभुने मेपो प्रश्न पूछे छे , “ से गुण भंते ! " महन्त ! शुन् वात निश्चित छ , “ महाकम्मस्स" रे न भनी स्थिति वगैरे गई। વધારે હોય છે એવા મહાકર્મવાળા જીવન-એટલે કે અધિક સ્થિતિવાળા, અધિક અનુભાગવાળા અને અધિક પ્રદેશવાળા કર્મથી યુક્ત જીવ કે જેની " महाकिरियस महासवस्स" यिी माहिया-1 ए पधारे प्रमामा અને તે કારણે જે કર્મબંધના કારણરૂપ મહામિથ્યાત્વ, મહાઆરંભ, મહાपरिग्रह माहिभा सायसी साय छ, “महावयणस्स " म२ २ महाहा જવર આદિથી જનિત વ્યથાથી (પીડાથી) ભયંકર વેદનાને અનુભવ કરતે सय छ, मेको ७१ " सव्वओ पोग्गला बज्झति" शुसभरत हिमांथी અથવા સમસ્ત આત્મપ્રદેશોથી પુલ એટલે કે કમપરમાણુઓના સંકલન રૂપ अरे छे मरे। १ " सव्वओ पोग्गला चिज्जति" वो समस्त દિશાઓમાંથી અથવા સમસ્ત આત્મપ્રદેશથી કર્મવગણરૂપ પુલને ચય કરે
श्री. भगवती सूत्र:४