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प्रमेयवन्द्रिका टीका श० ५ उ० १ सू० ३ ऋतुविशेषादिस्वरूपनिरूपणम् ६७ स्मकः प्रसिद्ध एव, एवम् ' पक्खेण वि ' पक्षेणापि अभिलापो विधेयः पक्षश्चार्षमासरूपः पञ्चदशाहोरात्रात्मकः, तथा 'मासेण वि' मासेनापि आलापको वक्तव्यः मासश्च त्रिंशदहोरात्ररूपः प्रसिद्ध एव । एवम् ' उऊणा वि' ऋतुनापि पूर्वसमयादि वत् आलापको भणितव्यः, ऋतुश्च मासद्वयात्मकः, तदुपसंहरनाह-एएसि सव्वेसिं ' एतेषां सर्वेषाम् आवलिकादिऋतुपर्यन्तानाम् ' जहा समयस्य अभिलावो' यथा समयस्य अभिलापः 'तहा भाणियव्यो' तथा भणितव्यः, तथा चैतत्प्रकरणोक्ताः दशसंख्यकाः समयावलिकादिऋतुपर्यन्ता अभिलापकाः प्रदशितदिशाऽवसेयाः। ततो हेमन्तविषये गौतमः पृच्छति-'जयाणं भंते !' इत्यादि हे भदन्त ! यदा खलु — जंबुद्दीवे दीवे ' जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणार्धे ' हेमंताणं' होता है।। (अहोरत्तेण वि ) अहोरात्र को लेकर भी इसी प्रकार से अभिलाप कहना चाहिये। तीस३० तीस मुहूर्तों का एक अहोरात्र होता है। (पखेण वि मासेण वि) इसी प्रकार से पक्ष और मास को लेकर भी अभिलाप बना लेना चाहिये। पन्द्रह दिन रात का एक पक्ष और दो पक्षों का एक मास होता है। ( उऊणा वि) ऋतु को लेकर भी इसी रूप से अभिलाप निष्पन्न कर लेना चाहिये। दो मास की एक ऋतु होती है। अब इसी बात का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि-(एएसि सव्वेसि जहा समयस्स अभिलावो तहा भाणियन्वो) आवलिका से लेकर ऋतु पर्यन्त का अभिलाप समय के अभिलाप की तरह से कह लेना चाहिये । इस तरह समय से लेकर ऋतुतक दश १० अभिलाप ये हो जाते हैं। ___ अब हेमंतऋतु के विषय में गौतम प्रभु से पूछते हैं कि-(जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमंताग पढमे समए पडिवज्जइ०१) हे भदन्त ! वि, पक्खेण वि, मासेण वि, उऊणावि ) २४ प्रमाणे हिनाविनी अपेक्षा, પખવાડિયાની અપેક્ષાએ, માસની અપેક્ષાએ. અને ઋતુની અપેક્ષાએ પણ એવાજ આલાપ (પ્રશ્નોત્તર) કહેવા જોઈએ. (૩ત્રીસ મુહૂર્તને રાત્રિદિવસ થાય છે, પંદર દિનરાતનું પખવાડિયું થાય છે અને બે પખવાડિયાને માસ થાય છે. બે માસની એક ઋતુ થાય છે. હવે એજ વાતને ઉપસંહાર કરતા સૂત્રકાર કહે छ है ( एएसिं सम्वेसिं जहा समयस्स अभिलावो तहा भाणियन्वो ) भापतिथी લઈને ઋતુ પર્યન્તના અલાપ ( પ્રશ્નોત્તર) સમયના અલાપક પ્રમાણે જ કહેવા જોઈએ. આ રીતે સમયથી સતુ પર્યાના ૧૦ દસ આલાપકો બનશે.
७३ गौतम भी उतना विषयमा प्रभुने प्रश्न ४२ छ (जयाण भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमंताणं पढमे सभए पडिवजह ) 3 werd! ल्यारे भा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪