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भगवतीसूत्रे तमेवापरदृष्टान्तेन दृढतरं करोति-' से जहा नामए केइ पुरिसे तत्तंसि अय कवेल्लुयंसि उदगबिंदु, जाव-हंता, विद्धंसं आगच्छइ' हे गौतम ! तत् यथा नाम कोऽपि पुरुष तप्ते अय कवेल्लुके-लोहकटाहे उदकबिन्दु यावत्-प्रक्षिपेत् , तत् नूनं स उदकबिन्दुः तप्ते लोहकटाहे प्रक्षिप्तः सन् क्षिप्रमेव विध्वंसमागच्छति? हन्त, भदन्त ! क्षिप्रमेव विध्वंसमागच्छति नाशं प्राप्नोति । भगवान् तं हाटीन्तिके योजयति-'एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं, जाव-महापज्जवसाणा भवंति ' हे गौतम ! एवमेव तप्तलोहकटाहप्रक्षिप्तोदकविन्दुवदेव श्रमणानां निग्रंन्थाना यावत्-यथावादराणि कर्माणि शिथिलीकृतानि निष्ठितानि कृतानि, विपरिणामितानि क्षिप्रमेव विध्वंसमागच्छन्ति, यावतिकां तावतिकामपि च वेदनां __इसी बात को दूसरे दृष्टान्त से दृढतर करते हुए वे गौतम से कहते हैं-(से जहा नामए केइ पुरिसे) गौतम ! जैसे कोई एक पुरुष (तत्तसि अयकवल्लुसि) अत्यन्त गरम हुए लोहे के तवे पर (उदग बिन्दु ) जल की बिन्दु को डाले-तो क्या गौतम! उस लोहे के अत्यन्त गर्म हुए तबो पर डाला गया वह जल का बिन्दु वहां नष्ट नहीं होगा क्या ? इसके उत्तर में गौतम स्वामी प्रभु से कहते हैं-क्यों नहींभदन्त ! वह वहां अवश्य ही शीघ्र नष्ट हो जायगा-(एवामेव गोयमा) तो हे गौतम ! इसी तरह से (समणाणं निग्गंथाणं) श्रमण निग्रन्थों के (जाव महापजवसाणा भवंति ) श्रमण, निर्ग्रन्थोंके यथायादर कर्म शिथि. लीकृत, निष्ठित, एवं विपरिणामित होकर शीघ्र ही आमूलचल(बिल्कुल) नष्ट हो जाते हैं । वे चाहें थोडी या बहुत-कैसी ही वेदना क्यों न भोगें अन्त में वे महानिर्जरा शाली होकर वे समस्त कर्मों के विध्वंस का
એજ વાતને બીજા દૃષ્ટાન્ત દ્વારા વધારે પુષ્ટિ આપવા માટે મહાવીર स्वामी गौतम स्वामीन ४ छ-" से जहा नामए केइ पुरिसे" 3 गौतम ! । ४ ५३५ “ तत्तंमि अयकवल्लुसि" अतिशय तावेदाना ताप ५२ “ उद्ग विन्दु" पार्नुसघु ना, तो गौतम ! शुंते पान ટીપું નાશ નહીં પામે ? તેને જવાબ આપતા ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને કહે છે “હે ભદન્ત ! તે ટીપું તુરત જ અવશ્ય નાશ પામશે.
__“ एवामेव गोयमा ! " गौतम ! मेरी प्रमाणे “समगाण निग्गंथाण" श्रम नियाना "जाव महापज्जवसाणा भवति" २३ पुस असा२ ક શિથિલીકત, નિષ્ઠિત અને વિપરિણામિત થઈને તુરંત જ સર્વથા નષ્ટ થઇ જાય છે. તેઓ ભલે થેડી વેદના ભેગવે કે વધારે વેદના ભેગવે, પણ તેઓ અને મહાનિર્જરાવાળા બનને સમસ્ત કર્મોના વિવંસ (નાશ કર્તાજ
श्री. भगवती सूत्र:४