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________________ therefront टीका श०५ ३० १ सू० ३ ऋतुविशेषादिस्वरूपनिरूपणम् ६३ समये वर्षाणां प्रथमः समयः' इति संग्राह्यम् तथा च दक्षिणोत्तरभागे वर्षाऽऽरम्भ समयाऽव्यहितोत्तरसमय एवं पूर्वपश्चिमभागेऽपि वर्षाकालारम्भो भवतीत्युत्तरम् । पुनगैतिमो दाढप पृच्छति' जयाणं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु 'जंबुद्दीवे दीवे ' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदर स्स ' मन्दरस्य ' पच्चयस्स ' पर्वतस्य पुरत्थिमेणं' पौरस्त्ये पूर्वभागे खलु वासाणं ' वर्षाणाम् ' पढमे " 6 , समए प्रथमः समयः ' पडिवज्जइ' प्रतिपद्यते ' तयाणं ' तदा खलु ' पच्चत्थि मेण वि ' पश्चिमेऽपि खलु ' वासाणं पढमे समए ' वर्षाणां प्रथमः समयः ' पडिवजह ' प्रतिपद्यते ? 'जयाणं' यदा खलु 'पच्चत्थिमेण वि ' पश्चिमेऽपि ' वासाणं पढमे समए' वर्षाणां प्रथमः समयः ' पडिवज्जइ ' प्रतिपद्यते ' तयाणं जाव 'तदा खलु यावत्-जम्बूद्वीपे द्वीपे इत्यर्थः ' मंदरस्स पव्त्रयस्य मन्दरस्य पर्वतस्य , वर्षाणां प्रथमः समयः ) इस पाठ का संग्रह हुआ है। तथा च दक्षिणोतरभाग में वर्षारंभ समय के अव्यवहित उत्तर समय में ही पूर्वपश्चिमभाग में भी वर्षाकाल का आरंभ होता है। ऐसा यह उत्तर है । अब गौतम पुनः दृढता निमित्त दूसरी तरह से प्रभु से पूछते हैं कि ( जया णं भंते!) हे भदन्त ! जब (जंबुद्दीवे दीवे) जंबूद्वीप नाम के द्वीप में (मंदरस्स पव्वयस्स ) मंदर पर्वत के ( पुरत्थिमेणं) पूर्वभाग में ( वासाणं ) वर्षा का ( पढमे समए ) प्रथम समय ( पडिवज्जइ ) होता है (तया f) तब ( पच्चत्थिमेणं वि ) पश्चिमभाग में भी ( वासाणं ) वर्षा का ( पढमे समए ) प्रथम समय ( पडिवज्जइ ) होता है । अतः (जया णं) जब ( पच्चत्थिमेण वि ) पश्चिम भाग में भी ( वासाणं ) वर्षा का ( पढमे समए) प्रथम समय ( पडिवज्जइ ) होता है तब ( जाव ) यावत् ( मंदरस्स पव्वयस्स मंदर पर्वत के ( उत्तर दाहिणेणं उत्तर दक्षिण भा ફેરફાર વિનાના સમય તાત્પર્ય એ છે કે જબુદ્વીપના દક્ષિણા અને ઉત્તરાર્ધમાં વર્ષાઋતુના પ્રારંભના જે સમય છે. એજ સમયે મંદરના પૂર્વ અને પશ્ચિમ ભાગમાં પણ વર્ષાઋતુના પ્રારંભ થાય છે. हवे गौतम स्वाभी या विषयां मील रीते अन पूछे छे - ( अयाण भंते ! ) हे अहन्त ! न्यारे ( ज बुद्दी दीवे ) मंजूद्वीप नामना द्वीपमा ( मंदसरः पव्वयस्स ) भ४२ पर्यंतना ( पुरत्थि मे ण ) पूर्वभागमां ( वासाण पढमे समए) वर्षाऋतुना प्रथम समय ( पडिवज्जइ ) होय छे, ( तयाण ) त्यारे " पच्चत्थिमेण वि " પશ્ચિમ ભાગમાં પશુ " वासाण " शु वर्षाऋतुना " पढमे समए पडिवज्जइ " પ્રથમ સમય હાય છે ? અને जाव मंदयरहस पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं तरपच्छाकडसमयंसि वासाण पढमे समए पडिवज्जइ ? " श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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