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________________ - प्रमेयचन्द्रिका 0 श० ५ उ०९०४ पाश्चात्त्यीय-महावीरयोर्वक्तव्यता ७१ -' से केणटेणं जाव-विगच्छिस्संति वा ? ' स्थविराः पृच्छन्ति-हे भदन्त ! तत् केनार्थेन यावत्-एव मुच्यते असंख्यातपदेशात्मके लोके-अनन्तानि रात्रिदिवानि उदपद्यन्त वा, उत्पधन्ते वा, उत्पत्स्यन्ते वा, व्यगछन् वा, विगच्छन्ति वा, विगमिष्यन्ति वा, परितानि,-परिमितानि रात्रिंदिवानि उदपद्यन्त वा, उत्पधन्ते वा, उत्पत्स्यन्ते वा, व्यगच्छन् वा, विगच्छन्ति वा, विगमिष्यन्ति वा, भगवानाह-' से गुणं भे अज्जो पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं सासए लोए घुइए ' हे आर्याः ! स्थविराः ! तद् नूनं भवतां गुरुणा पार्श्वन अहंता पार्श्वनाथेन प्रभुणा पुरुषादानीयेन पुरुषैः पुरुषाणां मध्ये वा आदानीयेन उपादेयेन प्रामाणिकरूप से सूत्रकार स्पष्ट करते हैं-(से केणठेणं जाव विगच्छिस्संति वा ?) श्रमण भगवान महावीर से स्थविर पूछ रहे हैं-हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कह रहे हैं कि असंख्यात प्रदेशात्मक लोक में अनन्त रातदिन उत्पन्न हुए, उत्पन्न होते हैं, और आगे भी उत्पन्न होंगे? इसी तरह से अनन्त रातदिन नष्ट हुए, नष्ट होते हैं और आगे भी नष्ट होंगे तथा परीत रातदिन इस असंख्यात प्रदेशात्मक लोक में उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और आगे भी उत्पन्न होंगे? इसी तरह से वे यहां नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं, और आगे भी नष्ट होंगे! इसके उत्तर में प्रभुने (से गूणं भे अजो! पासे गं अरहया पुरिसोदाणीएणं सासए लोए बुइए) कहा, हे आर्यो ! आपके गुरु अरिहंत पार्श्वनाथ ने जो कि पुरुषों के द्वारा अथवा पुरुषों के बीच में प्रामाणिक होने के कारण ग्राह्य-उपादेय माने गये हैं लोक को शाश्वत-सर्वदा स्थायी कहा हैं मे०४ पातने सूत्रारे 48 प्रश्नोत्त२३५ २५ष्ट ४२छ-( से केणटेण जावविगच्छिस्सति वा १) स्थविरे। भगवान महावीरने पूछे छे , मा५ ।। १२ એવું કહો છો કે અસંખ્યાત પ્રદેશવાળા લેકમાં અનંત રાત્રિદિવસ ઉત્પન્ન થયાં છે, વર્તમાનમાં સંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે, અને ભવિષ્યમાં પણ ઉત્પન્ન થતાં રહેશે ? એજ પ્રમાણે રાત્રિદિન નષ્ટ થયાં છે, નષ્ટ થાય છે, અને નષ્ટ થશે ? તથા આ અસંખ્યાત પ્રદેશવાળા લોકમાં પરીત ( નિયત) રાત્રિદિવસ ઉત્પન્ન થયાં છે, ઉત્પન્ન થાય છે અને ઉત્પન્ન થશે ? એજ પ્રમાણે ત્યાં પરીત રાત્રિદિવસો નષ્ટ થયાં છે, નષ્ટ થાય છે અને નષ્ટ થશે ? तेन पाम भापता महावा२ प्रभु ४ छ-(से गूण मे अन्नो ! पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं सासए लोए वुइए) 3 मार्या ! मापना गु३ અહંત પાર્શ્વનાથ કે જેઓને પુરૂષો દ્વારા ગ્રાહા-ઉપાદેય માનવામાં આવેલા છે, તેમણે આ લોકને શાશ્વત (નિત્ય કાયમને માટે જેનું અસ્તિત્વ રહેવાનું श्री. भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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