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अमेयचन्द्रिका टी० ० ५ उ० १ ० २ प्रकाशाम्पकारस्वरूपनिरूपणम् १८९
छाया-तद् नूनं भदन्त ! दिवा उद्योतः, रात्रौ अन्धकारः? हन्त, गौतम ! यावत्-अन्धकारः । तत् केनार्थन० ? । गौतम ! दिवा शुभाः पुद्गलाः, शुभः पुद्गलपरिणामः, रात्रौ अशुभाः पुद्गलाः, अशुभः पुद्गलपरिणामः, तत् तेनार्थेन० ! नैरयिकाणां भदन्त ! किम् उद्योतः, अन्धकारः ? गौतम ! नैरयिकाणां नो उद्द्योतः, अन्धकारः ! तत् केनार्थेन ? । गौतम ! नैरयिकाणाम् अशुभाः पुद्गला!,
प्रकाश-अंधकार वक्तव्यता
से गूणं भंते' इत्यादि । सूत्रार्थ-(से गूणं भंते ! दिया उज्जोए, राइं अंधयारे ) हे भदंत ! दिन में प्रकाश और रात्रि में अंधकार होताहै क्या ? (हंता गोयमा ! जाव अंधयारे) हाँ गौतम ! यावत् अंधकार होता है। (से केणटेणं०) हे भदन्त! ऐसा क्यों होता है? (गोयमा! दिया सुभा पोग्गला सुभे पोग्गल परिणामे राई असुमा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे) हे गौतम ! दिनमें शुभ पुद्गल होते हैं और शुभ पुद्गलपरिणाम होताहै।रात्रिमें अशुभ पुद्गल होते हैं और अशुभ पुद्गल परिणाम होता है । (से तेणटेणं) इस कारण ऐसा होता है। (नेरइयाणं भंते! किं उज्जोए, अंधयारे ?) हे भदन्त ! नारक जीवों के यहां प्रकाश होता है या अंधकार होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (नेरइयाणं णो उज्जोए अंधयारे) नारक जीवों के यहां उद्योत-प्रकाश-नहीं होता है-अंधकार ही रहता है।
પ્રકાશ અને અંધકારની વક્તવ્યતા– " से पूर्ण भंते !" त्याह
सूत्रा--(से णूणं भंते ! दिया उज्जोए, राई अधयारे १) महन्त ! शु. हिवसे प्राश भने रात्र ४२ डाय छ ? (हता गोयमा ! जाव अधयारे) डा, गौतम! हिवसे प्रशसन सत्र २ डाय छे. (से केणठेण ) 3 महन्त ! मे शा २ थाय छ ? (गोयमा दिया सुभा पोग्गला, सुभे पोग्गलपरिणामे, राई असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे) હે ગૌતમ! દિવસે શુભ પુલ હોય છે અને શુભ પુલ પરિણામ હોય છે, रात्रे मशुम पुरसहाय छे भने पशुम पुगत परिणाम डाय छे. ( से तेणद्वेण) ते २0 मे मने छ (नेरइयाणं भंते ! किं उज्जोए अधयारे १) महन्त ! ना२४ वानां २ मा शुप्रा डाय छ है अपार सय छ १ (गोयमा !) के गौतम ! ( नेरइयाण णो उज्जोए अंधयारे ) ना२४ वानi २३४ामा Maha डोत नथी, chi aaR 0 4 छे. ( से केणटेणं १) Meral
श्रीभगवती सूत्र:४