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भगवती एवं दशविधा अपि । एकेन्द्रिया वर्धन्तेऽपि, हीयन्तेऽपि अवस्थिता अपि, एतेषु त्रिष्वपि जघन्येन एकं समयम् , उत्कर्षेण आवलिफाया असंख्येयभागम् । द्वीन्द्रिया वर्धन्ते हीयन्ते तथैव, अवस्थिता जघन्येन एक समयम् , उत्कर्षेण द्वौ अन्तर्मुहूर्ती ,एवं यावत्-चतुरिन्द्रियाः । अवशेषाः सर्वे वर्धन्ते, हीयन्ते, तथैव । जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसणं अट्ठ चत्तालीस मुहुत्ता एवं दसविहा वि) जिस तरह से नारकों के विषय में कथन किया गया है-उसी प्रकार से असुर कुमारों के विषय में भी वृद्धि और हास कहदेना चाहिये जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से अडतालीस मुहूर्त तक वे अवस्थित रहते हैं । इसी प्रकार से दस भवनपतियों के विषय में भी जानना चाहिये । ( एगिदिया वति वि, हायंति वि, अवडिया वि, एएहिं तिहिं वि जहण्णेणं एक समयं आलियाए असंखेज्जहभागं) एकेन्द्रिय जीव बढते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। वृद्धि, हानि और यथावस्थित इन तीनों में जघन्य एक समय, और उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवां भाग जितना काल है । (बेइदिया-तिंदिया वइंति, हायंति, तहेव अवट्ठिया जहण्णे णं एक्कं समयं उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता, एवं जाव चउरिदिया) दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय जीव उसी तरह से बढते हैं और घटते हैं । इनका अवस्थान जघन्य से एक समय तक का और उत्कृष्ट से दो अन्तर्मुहूर्त तक का है । इसी तरह से यावत् चौइन्द्रिय जीवों के विषय में भी जानना चाहिये । ( अवसेसा सव्वे वटुंति, सेणं अट्ठचत्तालीस मुहुत्ता एवं दसविहावि) मसुमा। माछामा माछा मे સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે ૪૮ મુહૂર્તી સુધી અવસ્થિત રહે છે. એજ પ્રમાણે દસે ભવનપતિઓ વિષે સમજવું.
(एगिदिया वड्ढति वि, हायतिवि अवटिया वि, एए हिं तिहि वि जहण्णेणं एक समय, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भाग) मेन्द्रिय ७ वधे छ ५९५ ખરાં, ઘટે છે પણ ખરાં અને અવસ્થિત પણ રહે છે. તેમને વૃદ્ધિ, હાનિ ( હાસ) અને અવસ્થાન કાળ, ઓછામાં ઓછા એક સમયને અને વધારેમાં पधारे मावतिलाना मसज्यातमा माटोले (बेइंदिया-ति दिया-वड्ढति, हाय ति, तहेव अवद्विया, जहण्णेण एक समय, उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता, एवं घउरिदिया) द्वीन्द्रिय भने त्रीन्द्रिय व ५४४ मे प्रमाणे १धे छ भने ઘટે છે અને તેમને અવસ્થાન કાળ ઓછામાં ઓછો એક સમયને અને વધારેમાં વધારે બે અન્તર્મુહૂર્ત સુધીને કહ્યો છે. એ જ પ્રમાણે ચતુરિન્દ્રિય પર્યન્તના જી વિષે સમજવું.
श्री.भगवती सूत्र:४