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________________ ६०० भगवतीसूत्रे एकगुणकालकोऽपि पुद्गलः सार्धः, समध्यः, सप्रदेशः स्यात् , तदेव पूर्ववदेव नो अनर्धः, अमध्यः, अप्रदेशः स्यात् , ' अह ते एवं ण भवइ तो' अथ यदि ते तव बुद्धिविषये एवम्-उपर्युक्तरूपं न भवति. तवाभिमतं नो चेत् तदा 'जं वयसिदवादेसेण वि सबपोग्गला सअट्टा, समज्झा, सपएसा, णो अणडा, अमज्झा, अपएसा' यत् त्व वदसि-द्रव्यादशेनापि सर्वपुद्गलाः सार्धाः, समध्याः, सप्रदेशाः, नो अनर्धाः, अमध्याः, अपदेशाः, एवं खेत्त-काल-भावादेसेण वि' एवं तथैव क्षेत्रादेशेनापि, कालादशेनापि, भावादेशेनापि सर्वपुद्गलाः सार्धाः, समध्याः, सप्रदेशाः, नो अनर्धाः, अमध्याः, अप्रदेशाः इति. ' तं णं मिच्छा' तत् खलु सर्व त्वदुक्तं मिथ्या असत्यमेव, विपरीततया प्रतिपादितत्वात् । 'तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगार एवं वयासी' ततः खलु स नारदपुत्रोऽनगारः निर्ग्रन्थीतं चेव ) एकगुणकालक भी पुद्गल कृष्णवर्ण के एक अंशवाला भी पुद्गल -सार्ध, समध्य और सप्रदेश हो जावेगा-अनर्ध ' अमध्य और अप्रदेश नहीं रहेगा ( अह ते एवं न भवइ ) यदि तुम कहो कि ऐसा तो होता नहीं है तो फिर ( जं वयसि ) जो तुम ऐसा कह रहे हो कि (दब्वादेसेण वि सम्बपोगला स अड्डा, समझा सपएसा. णो अणडा, अमज्झा अपएसा ) द्रव्य की अपेक्षा से भी समस्त पुद्गल साध समध्य और सप्रदेश हैं-बे अनर्ध अमध्य अप्रदेश नहीं हैं, ( एवं खेत्तकाल-भावादेसेण वि ) क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से भी ऐसे ही हैं, (तं णं मिच्छा ) सो यह तुम्हारी समझ मित्था ही है क्यों कि यह सब तुमने विपरीत रूप से प्रतिपादन किया है । इस प्रकार निर्ग्रन्थीपुत्र अनागार का युक्तियुक्त कथन सुनकर ( से नारयपुत्ते अणगारे ) उन नारदपुत्र કૃષ્ણ વર્ણના એક અંશવાળા પુલને પણ સાર્ધ, સમધ્ય અને પ્રદેશ માનવું ५. तने पण मनधी, ममध्य भने महेश मानी शशे नहीं. ( अह ते एवं न भवइ) ने 24॥५ सेम ४ता 3 से तो मनी शॐ नही, तो (जं वयसि ) मा५ सयु २ ४ो छ। , (व्वादेसेण वि सव्व पोग्गला सअड्ढा, समग्झ', सपएसा, जो अणडढा, अमझा, अपएसा) द्रव्यनी मपेक्षा ५५ સમસ્ત પદ્રલે સાધ, સમધ્ય અને સપ્રદેશ છે, અનઈ, અમધ્ય અને અપ્રદેશ नथी, (एवं खेत्तकालभावादेसण वि) क्षेत्र, भने मावनी अपेक्षासे पर सवु छ,) ( त ण मिच्छो ) तमारी ते मान्यता पोटी छे, ४॥२६॥ કે તમે તેનું પ્રતિપાદન વિપરીત રીતે કર્યું છે. નિર્ગથી પુત્ર અણગારનું આ યુકિતયુકત (યોગ્ય પ્રમાણે દ્વારા સાબિત राये) इथन Ainीन ( से नारयपुत्ते अणगारे ) ना२६पुत्र मागारे (निय श्रीभगवती.सत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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