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भगवतीसूत्रे
कि सअड्ढा , समज्झा, सपएसा, उदाहु अणड्रा, अमज्झा, अपएसा ? हे आर्य ! ते तव बुद्धिविषये किम् सर्वपुद्गलाः सार्धाः अर्धेन सहिताः, समध्याः, मध्येन सहिताः सप्रदेशाः, प्रदेशैः सहिता वर्तन्ते ! उताडो अनर्धाः, अमध्याः, अप्रदेशाः वर्तन्ते ? 'अन्जो ! ति नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुतं अणगारं एवं वयासी- 'हे आर्य ! इति सम्बोध्य नारदपुत्रः अनगारः निम्रन्थी. पुत्रम् अनगारम् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'सयपोग्गला मे अज्जो ! स अट्टा, समझा, सपएसा, णो अणडा, अमज्झा, अपएसा, ' हे आर्य ! निर्ग्रन्थी पुत्र ! मे मम बुद्धिविषये सर्वबुद्गलाः सार्धाः, समध्याः, सप्रदेशाः, नो अनाः जहां पर नारदपुत्र अनगार विराजे हुए थे-वहां पर आये ( उवागच्छिता) वहां पर आकरके (नारयपुत्त अणगारं एवं वयासी) उन्हों ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार से कहा-(सव्यपोग्गला ते अजो ! किं स अट्टा, समझा, सपएसा-उदाहु-अणड्डा, अमज्झा, अपएसा) हे आर्य ! क्या तुम ऐसा समझते हो कि समस्त पुद्गल अर्धभाग सहित है ?, मध्यभाग सहित हैं और प्रदेशसहित है ? अर्धभागरहित नहीं है ? मध्यभागरहित नहीं हैं और प्रदेशों से रहित नहीं हैं ? इस प्रकार निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार का अभिप्राय सुनकर नरदपुत्र अनगार ने (अजोत्ति) हे आर्य इस संबोधन से उन्हें संबोधित करते हुए (नियंठिपुत्तं अणगारं एयं वयासी) उन निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा-(सव्वपोग्गला में अजो! स अड्रा, समज्झा, सपएसा-णो अणडा, अमज्झा,-अपएसा) हे आर्य ! मेरी समझ के अनुसार में तो ऐसा ही मानता हूं कि समस्त पुद्गल अर्धभाग सहित हैं, मध्यभाग मशार, ज्या नात्र मागार में उता, त्या माव्या ( उवागच्छित्ता) त्यां मापीन ( नारयपुत्तं अणगार एवं वयासो) तेभो ना२६पुत्र मारने मा प्रमाणे पूछ्यु-( सव्वपोग्गला ते अज्जो ! किं स अबढा, समझा, सप. एसा उदाहु अणड्ढा, अमज्झा, अपएसा ?) माय ! मा५शु मे भाना છે કે સમસ્ત મુદ્રલો અર્ધભાગ સહિત છે ? મધ્યભાગ સહિત છે ? અને પ્રદેશ સહિત છે ? અર્ધભાગ રહિત નથી, મધ્યભાગ રહિત નથી અને પ્રદેશ રહિત નથી ? નિર્ચથી પુત્ર અણગારને આ પ્રકારને પ્રશ્ન સાંભળીને નારદપુત્ર समारे ( अज्जोत्ति ) हे माय ! मे समाधन ४री (निय ठिपुत्तं अण गार एवं वयासी) तेमन (निथीपुत्र मारने ) या प्रमाणे ह्यु
(सव्य पोग्गला मे अज्ञो ! स अड्ढा समझा, सपएसा णो अणड्ढा, अमज्झा, अपएसा) माय ! समेत ये मानीसे छीमे समस्त पद्धव
श्री. भगवती सूत्र:४