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________________ ५८४ भगवतीसत्रे यकः प्रश्नः, जघन्येन एकसमयम् . उत्कृष्टेन आवलिकाया असंख्यभागम् , चतुर्विशति मुहूर्तानि च, एवं सप्तनारकसम्बन्धिविशेषताकथनम् , तथैव असुरकुमाराणाम् , एकेन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-समूच्छिम-गर्भज-बानव्यन्तर-ज्योतिषिक-सोधर्मे-शानादीनां वृद्धि-हास-स्थिरतानां विचारणा, तथा सिद्धानां तादृग् विचारणा च, जीवानां सोपवय-सापचय विषयकः प्रश्नः, निरूप. चय-निरपचयात्मकमुत्तरं च। तथा सिद्धानां तागविचारणा च, कालापेक्षया जीवमात्रस्य तादृशी विचारणा चेति ॥ पुद्गलों की पृथक् २ रू में अपेक्षा कृत न्यूनाधिकता, निर्ग्रन्धपुत्र से नारदपुत्रकी अपने अपराध की क्षमायाचना जीव की वृद्धि, हास यथावस्थान के विषय में गौतम का प्रश्न और यथावस्थामरूप से प्रश्न का समाधान, नैरयिक से लेकर वैमानिक देवोंतक पूर्वोक्त विचार का प्रतिपादन, सिद्धों की वृद्धि, हास और स्थिरता के विषय में विचार, जीवों का सर्वकाल में अवस्थान का कथन, नारक जीवों की वृद्धि हास और यथावस्थान के विषय में प्रश्न, नारक जीवों की वृद्धि और ह्रास जघन्य से एक समय तक, और उत्कृष्ट से आवलिका के असंख्यातवें भागतक, तथा अव. स्थान चौवीस मुहूर्त तक, इसी तरह से मातों ही नरक के संबंध में विशेषता का कथन, असुरकुमार, एकेन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संमूच्छिम, गर्भज, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, सौधर्म, ईशान आदि के देवों की वृद्धि, हास और स्थिरता की विचारणा, तथा सिद्धों की भी इसी तरह से विचारणा, जीवों के उपचय सहित होने की और अपचय सहित होने की पृच्छा, निरुपचय और निरपवयरूप से उत्तर, सिद्धों તે પ્રશ્નનું સમાધાન, નાકથી લઈને વૈમાનિક દેવ વિષેના પૂર્વોકત પ્રશ્નોનું પ્રતિપાદન, સિદ્ધોની વૃદ્ધિ હાસ અને સ્થિરતા વિષે વિચાર, જીવોની સર્વ. કાળમાં અવસ્થિતિનું કથન. નારકની વૃદ્ધિ અને હાલ ઓછામાં ઓછા એક સમય સુધી અને વધારેમાં વધારે આવલિકાના અસંખ્યાતમાં ભાગ સુધી, તથા અવસ્થાન ૨૪ મુહૂર્ત સુધી હોવાનું કથન. એ જ પ્રમાણે સાતે નરક સંબંધી વિશેષતાનું કથન, અસુરકુમાર, એકેન્દ્રિય, દ્વિન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય, સંમૂછિમ, ગર્ભજ, વાનપત્ર, તિષિક, સૌધર્મ, ઇશાન આદિના દેવેની વૃદ્ધિ, હાસ અને સ્થિરતાની વિચારણા, એજ પ્રમાણે સિદ્ધો વિષે પણ વિચારણા, જીવે ઉપચય સહિત હોય છે ? અને જો શું અપચય સહિત हाय छ १ मेव। “नि३५२५ मन नि२५-२५३५ डाय छ," मे उत्तर. श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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