SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ५ उ० ७ सू० ८ हेतुस्वरूपनिरूपणम् ५७९ अथ प्रकारान्तरेण अहेतूनेव प्रतिपादयति-पंच अहेऊ पण्णता, तं जहा -अहेउगा जाणइ, जाव-अहे उणा केवलिमरणं मरइ ' पञ्च अहेतयः केवलिन: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अहेतुना केवलज्ञानित्वात् तस्य सर्ववस्तुपत्यक्षतया अहेतु भावेन जानाति, अतः अहेतुरेवासौ केवली, एवम् सर्वप्रत्यक्षतया अहेतुना अहेतु. भावेन पश्यति, यावत्-अहेतुना अहेतुभावेन धूमादिकं श्रद्धत्ते, अहेतुना अहेतुत्वेन धूमादिकम् अभिसमागच्छति-प्राप्नोति, अहेतुना उपक्रमाभावेन केवलिमरणं म्रियते करोति,निर्हेतुकस्यैव केवलिनो मरणस्य भावात् । अथ व्यतिरेकेण अहेतूने वाह-'पंचअहेऊ पण्णत्ता, तं जहा-अहेण जाणइ, जाव-अहेउ छउमस्थमरणं __अब पुनः प्रकारान्तर से ही सूत्रकार अहेतुओं का प्रतिपादन करते हैं-(पंच अहेऊ पण्णत्ता ) पांच अहेतु कहे गये हैं-( अहेऊणा जाणइ, जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ ) केवली केवलज्ञानी होने से समस्त वस्तुओं को हस्तामलकवत् प्रत्यक्षज्ञान द्वारा स्पष्टरूप से जानते हैं-इस प्रकार से जानने में वे हेतुरूप से किसी का भी उपयोग नहीं करते हैंइसलिये ये अहेतुरूप ही माने गये हैं। तथा समस्त वस्तुजातका अवलोकन वे किसी हेतु की सहायता के विना ही करते हैं। धूमादिक हेतुओं का श्रद्धान अहेतु-भाव से ही उन्हें होता है। तथा-धूमादिक हेतुओं को वे अहेतरूप से ही प्राप्त करते हैं । उपक्रम का अभाव हानेके कारण वे केवलिमरण करते हैं क्योंकि-केवलिमरण निर्हेतुक ही होता है। अब सूत्रकार व्यतिरेक द्वारा पांच अहेतुओं का प्रतिपादन करते हैं-(तं जहा ) जैसे-( अहेउ ण जागइ, जाव अहेउ छउमत्थमर वे सूत्रा२ महेतुमानु ी राते प्रतिपादन ४२ छ-( पंच अहेऊ पण्णत्ता) पांय अतु हा छ, वां ( अहेऊणा जाणइ, जाव अहेऊणा कवलिमरणं मरइ ) जी भगवान विज्ञानी डाय छे. तेथी तमा समस्त १२तुमाने ( हस्तामलकवत् ) डायमा २७मामांनी म प्रत्यक्ष शानदा સ્પષ્ટ રૂપે જાણે છે. આ રીતે જાણવામાં તેઓ હેતુરૂપે કોઈપણ વસ્તુનો ઉપચાગ કરતા નથી, તેથી તેમને અહેતુ રૂપે જ માનવામાં આવેલ છે. તથા તેઓ સમસ્ત વરતુઓનું અવલોકન કોઈ પણ હેતુની સહાયતા વિના જ કરે છે. ધૂમાદિક હેતુઓની શ્રદ્ધા અહેતુ ભાવે જ તેમને થતી હોય છે. તથા ધૂમાદિક હેતુઓને તેઓ અહેતુ રૂપે જ પ્રાપ્ત કરે છે. ઉપક્રમને અભાવ હોવાથી તેઓ કેવલિમરણ પ્રાપ્ત કરે છે, કારણ કે કેવલિમરણ નિહેતુક જ હોય છે. હવે સૂત્રકાર વ્યતિરેક દ્વારા પાંચ અહેતુઓનું પ્રતિપાદન કરે છે–તે पांय साडेतुमे । प्रमाणे छे-( अहे ण जाणइ, जाव अहेउ छउमस्थमरणं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy