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प्रमेन्द्रका ठी० ० ५ उ० ७ सू०८ हेतुनिरूपणम्
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तद्यथा - अहेतुं जानाति, यावत् - अहेतुं केवलिमरणं म्रियते । पञ्च अहेतवः मज्ञप्ताः, तद्यथा - अहेतुना जानाति यावत् अहेतुना केवलिमरणं म्रियते । पश्च अहेतवः मज्ञप्ताः, तद्यथा - अहेतुं न जानाति यावत आहेतं छद्मस्थमरणं म्रियते । पच अहेतवः प्रज्ञताः, तद्यथा - अहेतुना न जानाति यावत् - अहेतुना छद्मस्थमरणं म्रियते । तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त । इति ॥ सु० ८ ॥
|| पञ्चमशते सप्तम उद्देशः समाप्तः ।। ५- ७ ॥
हेतु द्वारा नहीं जानता है । (जाव हेउणा अन्नाणमरणं मरइ ) यावत् हेतु द्वारा अज्ञान मरण करता है ।
(पंच अहेऊ पण्णत्ता ) पांच अहेतु कहे गये हैं । ( तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं - ( अहेऊं जाणइ, जाव अहेउं केवलिमरणं मरह ) जो अहेतु को जानता है- यावत् अहेतु वाले केवलिमरण को जो करता है । ( पंच अहेऊ पण्णत्ता ) पांच अहेतु कहे गये हैं ( तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं ( अहेउणा जाणइ, जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ ) जो अहेतु द्वारा जानता है यावत् अहेतु द्वारा जो केवलिमरण करता है | ( पंच अहेऊ पण्णत्ता) पांच अहेतु कहे गये हैं ( तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं - ( अहेऊं न जाणह, जाव अहेऊं छउमस्थमरणं नरइ) जो अहेतु को नहीं जानता है यावत् अहेतु छद्मस्थमरण को जो करता है । (पंच अहेउ पन्नत्ता ) पांच अहेतु कहे गये हैं । ( तं जहा ) वे इस प्रकार से हैं । ( अहेउणा न जाणइ जाव अहेउणा चउलगुतो नयी, ” त्यांथी श३ ४रीने ( जाव अन्ना णमरणं मरइ ) અજ્ઞાન મરણુ आप्त उरे छे" त्यां सुधीना यांय हेतु समभवा. ( पंच हेऊ पण्णत्ता ) हेतु ह्या छे. (तंजा ) ते या प्रमा छे - ( हेउणा ण जाणइ ) "ने हेतु द्वारा लगुतो नथी, " अडींथी सहने (जाब हेउणा अन्नाणमरणं मरह ) "डेतु द्वारा अज्ञान भरणु आप्स रे छे, ” त्यां सुधीना यांग हेतु समवा ( पंच अऊ पण्णत्ता, तजहा ) नीथे प्रभाले पांच महेतु उह्या छे - ( अहेउ जाणइ, जात्र अहेउ केवलिमरणं मरइ ) “ े भडेतुने लगे छे, " अडींथी श३ उरीने मतुवालु ठेवसिभर यामे छे, ” त्यां सुधीना पांय हेतु समभवा.
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( पंच अहेऊ पण्णत्ता, तनहा ) नीचे प्रमाणे पांच भडेतु उद्या जाणइ, जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ ) "ने महेतु द्वारा અહીંથી શરૂ કરીને “ જે અહેતુ દ્વારા કેલિમરણ પામે છે, यांय आहेतु समन्न्वा (पंच अहेऊ पण्णत्ता, तजहा) यांय अहेतु उद्या छे, ते माप्रमाणे छे - ( अहेऊं न जाणइ, जाव अहेऊं छउमत्थमरणं मरइ ) અહેતુને જાણતા નથી, ” અહીંથી શરૂ કરીને “ જે અહેતુ છદ્મસ્થમરણ માસ
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श्री भगवती सूत्र : ४