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________________ मगवतीसूत्रे 6 ईषदवनस्त्रीभूताः पर्वतमदेशाः परिगृहीता भवन्ति, जल-थल - बिलगुह-लेणा परिग्गहिया भवंति ' जल-स्थल - बिल-गुहा -लयनानि परिगृहीतानि भवन्ति, तत्र - जल-स्थल - बिल - गुहाः प्रसिद्धाः, लयनम् - उत्कीर्णगिरि गृहम् । 'उज्झर - निज्झर - चिल्लल-पल्लल-वष्पिणा परिग्गहिया भवंति ' अवझर-निर्झरचिल्लल- पल्वल- वप्राणि परिगृहीतानि भवन्ति, तत्र अवझरः- गिरितटमान्तात् उदकस्या धः पतनम् निर्झरः जलस्रवणम्, चिल्ललम् कर्दममिश्रोदकयुक्तो जलाशयः, पल्वलम् अल्पजलाशयः प्राणिः केदाराः - सजलक्षेत्राणि, 'अगड - तडाग री-शिखरों वाले पर्वत, प्राग्भार- कुछ २ झुके हुए पर्वतप्रदेश ये सब परिगृहीत होते हैं अर्थात्-ये पंचेन्द्रियतियेच जीव इन स्थानों पर रहते ५६२ और इन स्थानों को ये अपना मानते रहते हैं (जल-थल - बिल-गुह - लेणा परिग्गहिया भवंति ) जलमार्ग, स्थलमार्ग और बिल तथा गुफाएँ ये सब प्रसिद्ध स्थान हैं। पर्वतों को काट कर जो घर बनाएँ जाते हैं उनका नाम लयन हैं, इन सब स्थानों में ये पंचेन्द्रिय तिर्यंच रहते हैं । अतः इन स्थानों में रहने के कारण ये इन स्थानों को अपनी ममता का विषयभूत बनाए रहते हैं । ( उज्झर निज्झर - चिल्लल- पलल- वप्पिणा - परिग्गहिया भवंति ) गिरितटके प्रान्त भाग से जल नीचे जहां गिरता है उस स्थान का नाम अवझर है, जमीन के भीतर से जिस स्थान पर जलं झरता है उसका नाम निर्झर है । कर्दम से मिश्र जल जिस जलाशय में भरा रहता है उसका नाम चिल्लल- चिक्खल है । थोड़ा सा जल जिस जलाशय में होता है उसका नाम पल्वल है - भाषा में इसे पोखर कहते हैं। खेतोंवाला अथवा तटवाला जो स्थान होता है उसका नाम ( भुङ पर्वत ), शिमरी ( शिशवाणां पर्वती), प्रसार ( सडेन सडेन ઢળતા પ્રદેશ) પરિગૃહીત થયેલાં હાય છે. એટલે કે તેએ એ સ્થાને પર रहे छे भने ते स्थानाने तेथे पोतानां भाने छे. ( जल, थल, बिल, गुह, लेणा परिग्गहिया भवति) जमार्ग, स्थणमार्ग, ४२ वि. ना हर, गुट्टायो, લયન (પતાને કાતરીને બનાવેલાં ઘરો ) આદિ સ્થાને ના તેએ પરિગ્રહ કરે છે. એટલે કે તે સ્થાનાને પેાતાનાં માનીને તેમાં વસવાટ કરે છે, અને ते स्थान पर तेभने भमता अंधा होय छे. ( उज्ज्ञर, निज्जर, चिल्लल, पल्लल, वणि परिगहिया भवति ) भवर ( पवर्तनी अदृरथी नीचे उतरतां अर), નિઝર (જમીનમાંથી વહેતાં ઝરણાં), ચિદ્લક-ચિખલ (કાદવ મિશ્રિત પાણીવાળું જળાશય–ખામેચિયું), પલ્વલ અથવા પેખર ( ઘેાડા પાણીવાળું જળાશય, તલાવડી ), વી ( ખેતરાવાળાં અથવા કિનારાવાળા સ્થાના આદિ સ્થાનમાં श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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