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________________ भगवतीसत्रे " अथासुरकुमारादिवक्तव्यतामाह-' असुरकुमारा गं ' इत्यादि । असुरकुमारा णं भंते 1 किं सारंभा पुच्छा ?' गौतमः पृच्छति - हे भदन्त । असुरकुमाराः भवनपतिविशेषाः खलु किम् सारम्भाः सपरिग्रहाः ? उताहो अनारम्भाः, अपरिग्रहाः ? इति पृच्छा-प्रश्नः १ भगवानाह - 'गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा, पो अणारंभा, पो अपरिग्गदा ' हे गौतम ! असुरकुमाराः खलु सारम्भाः सपरिग्रहाः भवन्ति, नो अनारम्भाः नो वा अपरिग्रहा भवन्ति, इति समाधानाशयः । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति' से केणद्वेणं ? तत् केनार्थेन केन हेतुना असुरकुमाराः सारम्भाः सपरिग्रहाः, नो अनारम्भाः नो अपरिग्रहाः ? भगवानाह - 'गोयमा ! असुरकुमारा मैंने ऐसा कहा है कि नारक जीव आरंभसहित और परिग्रह सहित होते हैं - आरंभरहित और परिग्रह रहित नहीं होते हैं । अब सूत्रकार असुरकुमार संबंधी बक्तव्यता को कहते हैं (असुरकुमाराणं भंते! इत्यादि सूत्र द्वारा - गौतमस्वामी प्रभु से पूछ रहे हैंभदन्त । असुर कुमार देव (किं सारंभा पुच्छा) क्या आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं ? या अरंभ परिग्रह रहित होते हैं ? उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम! ( असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा ) असुर कुमार भवनपति विशेष- आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं । ( जो अणारंभा अपरिग्गहा ) आरंभ और - परिग्रह से रहित नहीं होते हैं । गौतम इस विषय में कारण पूछते हैंकि - ( से केणद्वेणं) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि ५५६ મે' એવું કહ્યું છે કે નારક જીવા આરંભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત હાય છે, તેઓ આર્ભ અને પરિગ્રહથી રહિત હાતા નથી. હૅવે નીચેના પ્રશ્નોત્તરો દ્વારા સૂત્રકાર અસુરકુમારાના આરંભ આદિનું નિરૂપણ કરે છે गौतम स्वामीनी प्रश्न--- ( असुरकुमाराणं भंते ! किं सारंभा पुजा १ ) ૐ ભદન્ત ! શું અસુરકુમાર દેવે આરભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત હાય છે ? । આરભ અને પરિગ્રહથી રહિત હાય છે? તે भडावीर अनु टुडे छे-" गोयमा " हे गौतम! ( असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा ) असुरकुमारी आरंभ भने परियद्धथी युक्त होय छे, ( णो अणारंभा णो अपरिगगहा ) भारंल भने परिभ्रड्थी रहित होता नथी. गौतम સ્વામી તેનું કારણ જાણવા માટે મહાવીર પ્રભુને નીચેને પ્રશ્ન પૂછે છે. ( से केणट्टेणं) से लहन्त ! आप था अरशे मे ४ छ ! मसुरडुभारी - श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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