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________________ মনিকা তা আ০ ৭ ০ ০ ২ মিষিকবলিত্ব ৪ दिवसो भवति तदा 'तेरसनुहुत्ताराईभवइ' त्रयोदशमुहूर्ता रात्रिर्भवति, सर्वाभ्यन्तर मण्डलोव्यहितपूर्ववर्ति १८२ द्वयशीत्यधिकशततममण्डलादारभ्य प्रतिमण्डलं विलोमतया बहिः परावर्तमानः सूर्यो यदा एकत्रिंशत्तममण्डलार्धे संचरति तदो प्रतिमण्डलमेकैकोक्तपलचतुथ्यहासक्रमे गैकपुहूतहासात् सप्तदशमुहूर्त दिवसमान भवति, रात्रिमानेचैकमुहूर्तोपचयात् त्रयोदशमुहूर्त रात्रिमानं सम्पद्यते , इत्याशयः। एवं ' सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेगा तेइरसमुहुत्ताराई ' सप्तदशमुहूर्तानन्तरो दिवसः सातिरेका त्रयोदशमुहूर्ता रात्रिभवति, एतावता उपर्युक्तद्वयशीत्यधिकशततम १८२ मण्डलादारभ्य यदा सूर्यो विलोमतया बहिः प्रतिमण्डलं परावर्तमानो जब सत्तरह मुहूर्त का दिन होता है तब (तेरस मुहुत्ता राई भवइ) तेरह मुहूर्त की रात्रि होती है तात्पर्य यह है कि जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल के अव्यवहित पूर्ववर्ती १८२ एकसो बयासो ३ मण्डल से लेकर प्रत्येक मंडल पर विलोमरूप से चलता २ इकतीस वें मण्डलार्थ में-मं. डलके आधे भाग में-पहुंचता है, तब प्रतिमण्डल के एक २ चारपलरूप समय के हास के क्रम से, एक मुहूर्त रूप समय का हास हो जाता है। इस कारण १७ सत्तरहमुहूर्त का दिन होता है, और रात्रिमान में एक मुहूर्त का समय बढ जात है-इसलिये रात्रि का मान बारह मुहूर्त की जगह तेरह मुहूत्त का हो जाता है । इसी तरह (सत्तरसमुहुत्तागंतरे दिवसे साईरेगा तेरसमुहुत्ताराई) जब सत्तरह मुहूर्त से कुछ कम दिनमान होता है तब रात्रिमान कुछ अधिक तेरह मुहूर्त का हो जाता है, तात्पर्य कहने का यह है कि जब सूर्य पूर्वोक्त १८२ एकसो बयासी वें मंडल से लगा. रसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तेरसमुहुत्ता राई भवई' न्यारे १७ सत्तर भुतनी हिवस થાય છે, ત્યારે ૧૩ તેર મુહૂર્તની રાત્રિ થાય છે. તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે સૂર્ય સર્વાભ્યન્તર મંડળના ૧૮૨ મા મંડળથી માંડીને પ્રત્યેક મંડળ પર વિલેમર ૨ (વ્યુત્ક્રમરૂપે)બહાર સંચાર કરતો કરતો ૩૧એકત્રીસમાં મંડળાર્ધમાં (મંટળના અધ ભાગમાં) પહેચે છે. ત્યારે પ્રત્યેક મંડળે ચાર, ચાર પળપ્રમાણુ સમય ઘટતા ઘટતા એક મુહૂર્ત પ્રમાણુ સમય ઘટી જઈને, સત્તર મુહુર્તને દિવસ થાય છે, અને રાત્રિના કાળપ્રમાણમાં એક મુહૂર્તને કાળ વધી જવાથી તેર મુડૂતની रात्रि थाय छ. 20४ प्रमाणे “ सत्तरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे साईरेगा तेरस-मुहुत्ता राई "न्यारे सत्तर भुडूतथा सडा माछ। प्रमाण वाणे हवस थाय छ, ત્યારે ૧૩ મુહૂર્તથી સહેજ વધુ પ્રમાણવાળી રાત્રિ થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે સૂર્ય પૂર્વોક્ત ૧૮રમાં મંડળથી સતત વિલેમરૂપે વ્યુત્ક્રમે श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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