SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 566
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ भगवतीस्त्रे गृाटक-त्रिक-चतुष्क-चत्वर-चतुर्भुख-महापथाः परिगृहीता भवन्ति, शकटरथ-यान-युग्य-गिल्लि-थिल्लि-शिविका-स्यन्दमानिकाः परिगृहीता भवन्ति, लौही-लोहकटाह-कटुच्छुकानि परिगृहीतानि भवन्ति, भवनानि परिगृहीतानि भवन्ति, देवाः, देव्यः, मनुष्या', मनुष्यः, तिर्यगयोनिकाः, तिर्यग्योनयः, आसन-शयन-स्तम्भ-भाण्ड-सचित्ता-s-चित्तमिश्रितानि द्रव्याणि परिगृहीतानि लेण-आवणा परिग्गहिया भवंति ) प्रासाद, गृह शरण, लयन, आपण दुकान ये सब परिगृहीत होते है। (सिंघाडग-तिग-चउक-चच्चरचउम्मुह-महापह परिग्गहिया भवति ) शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर चतुर्मुख और महापथ ये सब मार्ग इनसे गृहीत होते है । ( सगडरह-जाण-जुग्ग-गिल्लि, थिल्ली सीय-संदमागियाओ परिग्गहियाओ भवंति)शकट, रथ यानायुग धुरा गिल्लि (हाथीकाहोद्दा) (थिल्ली) शिषिका ओर स्यन्दमानिका ये सब वाहन इनके द्वारा परिगृहीत होते है (लोही, लोहकडाह, कडुच्छुया, परिग्गहिया भवंति ) तवा, लोहेकी कडाही, क. रछली-ये सब परिग्रह इनके पास रहता है । (भवणा परिग्गहिया भवंति ) भवन भी परिगृहीत होते हैं ( देव, देवीओ, मणुस्सीओ तिरिक्खजोणिया, तिरिक्वजोणिजीओ आसण-सयण-खड-भंड-सचित्ता चित्तमीसियाई दवाइं परिग्गहियाई भवंति ) देव, देवियां, मनुष्य, मनुष्यणियां, तिर्यश्च, तियश्चनियां, आसन, शयन, खंड, भांड, सचित्त, ( भडेस), १२, १२९ (५४ ), सयन (पतनी २ तरीन બનાવેલાં ઘર ) આપણ (દુકાન) આદિને પરિગ્રહ પણ તેઓ કરતા હોય છે. (सिंघाडग, तिग, चउक, चच्च, चउम्मुह, महापह, परिंग्गहिया भवति ) तेथे। શૃંગાટક, ત્રિક ( જ્યાં ત્રણ રસ્તા મળતા હોય એવું સ્થાન), ચેક, ચતુર્મુખ (यार पाशवाणु स्थान ) मने २४मागने। परियड ३२ता डाय छे. (सगड, रह, जाण, जुग्ग, गिल्लि, थिल्लि, सीय, संदमाणियाओ-परिगहियाओ भवति ) तमा ॥i, २थ, यान, युग (घांसरी), Freeी (हाथीना हो या दी), થિલી (બગી), શિબિકા, સ્ટેન્દમાનિકા આદિ વાહનને પરિગ્રહ કરતા હોય छ. (लोही, लाहकडाह, कडुच्चुया, परिग्गहिया भवति) 31, सोढानी डी, ४२७सी महिना तेसो परियड ४२ छ, (भवणा परिमाहिया भवति ) तमा भवनान। परियड ४२ छ.) देवा, देवीओ, मणुस्सा, मणुस्मीओ, तिरिक्खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ, आसण, सयण, खंड, भंड, सचिताचित्तामीसियाई व्वाइं परिगहियाई भवति ) हेव, वामी, मनुष्य, मानववी। तिय य, तिय यएमा, भासन, शयन (शय्या), 43, His, सथित्त, मथित्त मन भित्र द्रव्या શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy