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प्रमेयचन्द्रिका टी०।०५३०७६०७ नैरथिकादीनांसारंभानारंभादिनिरूपणम् ५५१ तडाग-हद-नधः,वाप्यः,पुष्करिण्यः,दीर्षिकाः, गुञालिकाः, सरांसि, सरःपडक्तयः सरस्सरःपङ्क्तयः, बिलपङ्क्तयः परिगृहीता भवन्ति, आरामो-द्यानानि काननानि, वनानि वनषण्डाः, वनराजयः परिगृहीता भवन्ति, देवकुला-श्रम-प्रपा-स्तूपखातिका-परिखाः परिगृहीता भवन्ति, प्रकाराऽहालक-चरिका-द्वार-गोपुराणि परिगृहीतानि भवन्ति, प्रासाद-गृह-शरण-लयनाऽऽपणाः परिगृहीतानि भवन्ति, दह-नई ओ, वावि पुक्खरिणी, दीहिया, गुंजालिया, सरा, सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ, बिलतियाओ, परिग्गहियाओ भवंति ) इनके द्वारा कूप, तालाव, द्रह, नदी, वावडी चौकोर वाली वापिका, पुष्करिणीगोलाकार वाली वावडी, दीर्घिका-लंबा चौडा जलाशय, गुंजालिका टेडामेडा जलाशय विशेष, सर-जलाशय विशेष, सरः पङ्क्ति-तडाग श्रेणियों, सरःसरपंक्तियां-तडागों की परम्परा रूप से जो पंक्तियां हैं यह सरः सरपंक्तियां हैं, बिलपंक्तियां-नालियों की पंक्ति को विलपंक्ति कहते हैं ये सय स्वाधीन की गई होती हैं । ( आरामुज्जाग काणणा पणा वणसंडा, वणराइओ परिग्गहियाओ भवंति ) आराम, उद्यान, कानन, वन, वनखंड, वनराजी ये सब इनसे परिगृहीत रहती हैं। (देव उलाऽऽसमपवा-थूभ-खाइय-परिखाओ परिग्गहियाओ भवंति ) देवकुल, आश्रम, प्रपा, स्तूप, खातिका, परिखा ये सब इनके द्वारा परिगृहीत रहती है, (पागार-अट्टालग-चरिय-दार-गोपुरा-परिग्गहिया भवंति ) प्राकार-कोट, अट्टालिका-अटारी चरिका-मार्गविशेष, द्वारा पुरद्वार, ये सब इनके द्वारा परिगृहीत होते है । (पासाय-घर-सरण४री ते त्या २७ छ. ( अगड, तडाग, दह, नईओ, वावि, पुनरिणी, दीहिया, गुजालिया, सरा, सरपतियाओ, सरसरपंतियाओ, बिलपतियाओ परिग्गहियाओ भवंति ) तसा वा, तणाव, द्रह (मोटाशय), नही, वा (योमुलायं Vाशय), पुलिपि ( १२नी पा), दीपि (ciभु पाणुनाशय),
म. ( यूछाशय), सरो१२१, २२।१२नी २माजासी, सश. વરની પરંપરારૂપ પંક્તિ, નાળાઓ વગેરે સ્થાનને પિતાને ત્યાં આધીન
शन त्यां २ता उसय छे. (आगमुज्जाण, काणणावणा वणसंडा, वणराइओ, परिग्गहियाओ भवति ) साराम स्थान धानी, आननी, पना, बना , वन वगेरे स्थान परियड ५५ ते ४२ता डाय छे. (पागार, अहालग, चरिय, दार, गोपुरा, परिग्गहिया भवति ) प्रा२ (ट) मट्टालिका (अटारी). ચરિક ( માર્ગ વિશેષ ) દ્વાર, પુરદ્વાર, આ બધાં રથાનેને પરિગ્રહ તેઓ १२॥ साय छे. (पासाय, घर, सरण, लेण, आवणा परिग्गहिया भवति ) प्रासाद
श्री.भगवती सूत्र:४