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________________ - भगवतीस्त्रे भवंति, सिंघाडग-तिग-चउक-चच्चर-चउम्मुह-महापहा परिग्गहिया भवंति, सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लिथिल्लि-सीय-संदमाणियाओ परिग्गहियाओ भवंति, लोही-लोहकहाड-कडुच्छया परिग्गहिया भवति, भवणा परिग्गहिया भवंति, देवा, देवीओ, मणुस्सा, मणुस्सीओ. तिरिक्खजोगिया, तिरिक्खजोणिणीओ, आसण-सयण-खंभ-भंड-सचित्ताऽचित्त-मीसियाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति, से तेणटेणं। जहा तिरिक्खजोणिया तहा मणुस्सा वि भाणियव्वा । वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा भवणवासी तहा नेयव्वा ॥ सू० ७॥ __छाया-नैरयिकाः खलु भदन्त ! किं सारम्भाः, स परिग्रहाः, उताहो अनारम्भाः, अपरिग्रहाः? गौतम नरयिकाः सारम्भाः, सपरिग्रहाः, नो अनारम्भाः, नो अपरिग्रहाः, तत् केनार्थेन यावत् अपरिग्रहाः ? गौतम ! नैरयिकाः पृथिवीकार्य नैरयिकों की असुरकुमार आदिकों की एकेन्द्रियादिकों की आरंभ अनारंभ आदि वक्तव्यता "नेरइयाणं भंते !" इत्यादि ॥ सूत्रार्थ-(नेरइयाणं भंते ! किं सारंभा, सपरिग्गहा उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा) हे भदन्त ! नारक क्या आरंभ और परिग्रह से सहित है! अथवा आरंभ और परिग्रह से रहित हैं ! ( गोयमा) हे गौतम ! (नेरइया सारंभा सपरिग्गहा णो अणारं भा णो अपरिग्गहा) नारक आ. रंभ और परिग्रह सहित हैं आरंभ और परिग्रह से रहित नहीं हैं। નારકે, અસુર કુમારાદિ દેવ અને એકેન્દ્રિયાદિ જીવોના આરંભ અનારંભ આદિનું નિરૂપણુ– "नेरइयाणं भंते !" त्याहि सूत्रा--(नेरइयाणं भंते ! किं सार'भा, सपरिगगहा, सदाहु अणारभा, अपरिग्गहा ?), महन्त ! ना२४ व शुमार ने परिवाणा डाय छ ! मया माल मने परिअड बिनाना डाय छ १ (गोयमा ! ) 3 गौतम! (नेरइया सारंभा, सपरिगहा, णो अणारभा णो अपरिगगहा) ॥२४ wal આરંભ અને પરિગ્રહવાળા હોય છે, તેઓ આરંભ અને પરિગ્રહવિનાના હેતા नयी. (से केणदेणं जाव अपरिगगहा) हे महन्त ! मा५ ॥ २२ मे श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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