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प्रमेयचन्द्रिका टीश०५४०७ सू०५ परमाणुपुद्गलादीनां निरूपणम् ५५ र्षेण असंख्येयकालं तिष्ठति, ‘एवं बादरपरिणए पोग्गले' एवं तथैव बादरपरिणतः स्थूलपरिणामी पुद्गलः जघन्येन एकं समयम् उत्कर्षेण असंख्येयं कालं तिष्ठति। गौतमः पुनः पृच्छति-'सद्दपरिणएणं भंते ! पोग्गले कालओ केवचिरं होइ ? हे भदन्त ! शब्दपरिणतः खलु पुद्गलः कालतः क्रियच्चिरं कियत्काल पर्यन्तं भवति ! भगवानाह-'गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं ' हे गौतम ! शब्दपरिणतः पुद्गलः जघन्येन एकं समय तिष्ठति, ' उक्कोसेणं आलियाए असंखेजइभागं' उत्कर्षेण आवलिकाया असंख्येयभागं तिष्ठति, ' असहपरिणए जहा-एगगुणकालए' परिणए पोग्गले ) इसी प्रकार से सूक्ष्मरूप में परिणत हुआ पुद्गल जघन्य से एक समयतक और उत्कृष्ट से असंख्यात कालतक रहता है । इसी तरह से (बादरपरिणए पोग्गले ) बादर परिणत स्थूल परिणामी हुए पुद्गल के विषय में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल जानना चाहिये । अव गौतम प्रभु से यह पूछते हैं कि ( सद्दपरिणएणं भंते ! पोग्गले कालओ केवच्चिरं होह) हे भदन्त ! शब्दरूप से परिणत हुआ पुद्गल इसी शब्दरूप परिणति में कितने कालतक रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं (गोयमा ) हे गौतम ! (जहण्णेणं एगं समयं ) शब्दरूप से परिणत हुआ पुद्गल इसी शब्दरूप परिणति में कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक (आवलियाए असंखेज्जइभागं ) आवलिकाके असंख्यातवें भागप्रमाण कालतक रहता है। (असदपरिणए जहा एगगुणकालए ) अशब्दरूप ५९ मेम सा. “ एव सुहुमपरिणए पोग्गले ” से प्रभारी सूक्ष्मરૂપે પરિણમેલું પુદ્ગલ પણ ઓછામાં ઓછું એક સમય સુધી અને વધારેમાં qधारे असन्यात सुधा में स्थितिमा २३ छे. “ एवं बादरपरिणए पोग्गले " 20 प्रमाणे स्थूस३५ परिणभेयु पुस ५] धन्य समय પર્યન્ત અને અધિકમાં અધિક અસંખ્યાત કાળ પર્યન્ત એજ અવસ્થામાં રહે છે.
गौतम स्वाभानी प्रश्न-" सहपरिणएणं भंते ! पाम्गले कालओ केवच्चिरं होइ ?” महन्त ! २५४३२ ५२७ मे पुरा से श६३५ परिणतिमा કેટલા કાળ સુધી રહે છે ?
महावीरप्रसुनी उत्तर- गोयमा !" जहण्णेण एगं समय" गीतम! શબ્દરૂપે પરિણમેલું પુદ્ગલ એ જ શબ્દરૂપ પરિણતિમાં ઓછામાં ઓછા એક समय सुधी भने धाभां वधारे " आवलियाए असंखेज्जभागं" मालिनी असभ्यात मा प्रभार सुधी २३ छ, “असहपरिणए जहा एगगुणकालए"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪